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________________ यह गाथा चूर्णि में व्याख्यात नही है, अतः इसका भी समावेश यहाँ नहीं है । यद्यपि इस गाथा का विवरण प्राचीन चूर्णि में है और अर्थ संगति की दृष्टि से प्रस्तुत भी है । क्योंकि उसके विना द्रव्यस्थापना के सातवें अचित्त द्वार की व्याख्या अधूरी रहती है । चउसु कसाएसु गती निरयतिरि माणुसे य देवगती । उवसमह णिच्च कालं सोग्गइ मग्गं वियाणंता ॥ (नि.पं. १०४ / १) यह गाथा भी चूर्णि में व्याख्यात नहीं है । निर्युक्तिपञ्चक में भी इसे अतिरिक्त गिना है । अतः यहाँ भी समाविष्ट नहीं है । मासट्ठ महिगा तो प्राचीन चूर्णि एवं आ. माणिक्यशेखरसूरि के अवचूर्णि की नियुक्ति गाथा में कुछ पाठ-भेद मिलते हैं, वह निम्नप्रकार हैं, गाथा क्र. प्राचीन चूर्णि गाथा ७ गाथा ८ गाथा ८ गाथा १८ गाथा २४ गाथा ३८ गाथा ४७ गाथा ५१ गाथा ५२ गाथा ५५ गाहावइ गाथा ५७ पंडुर गाथा ५९ वेग गाथा ६० गतवेरे गाथा ६१ पच्छित्तं बहु पाणा गाथा ६७ अ पंचमए अ पच्छिम कल्पनिर्युक्ति की प्राचीन चूर्णि एवं आ. माणिक्यशेखरसूरि की अवचूर्णी में कुछ व्याख्याभेद भी मिलते हैं, वह निम्न प्रकार हैं : 6 असाहगवाघाएण ठियाण जाव मोत्तूण पाणाणं रद्धेय पंडरज्ज सुट्ठाइऽति को गिण्हावइ पंडरज्जा वेगी गतवरे पच्छित्ते बहु पाणा आ. माणिक्यशेखरसूरिजी की चूर्णि मासेट्ठ अहिगा तु साहगवाघाएण (प्रा. चूर्णेः पाठः सम्यक्) ठियाणऽतीए (अव. अनुसारेण जाव. इत्येव सम्यक् ) मोत्तूर्णं पाणा लद्धेय (अर्थभेद) पंडुरज्ज सुट्ठाऽतिवे
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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