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________________ ३. ४. आ. श्रीमाणिक्यशेखरसूरिजी संभवतः विक्रम की १५वीं सदी में विद्यमान थे । अंचलगच्छीय मेरुतुंगसूरिजी के शिष्य आ. श्रीजयकीर्तिसूरिजी ने वि. सं. १४८३ में एक चैत्य की देरी की प्रतिष्ठा की थी; जिसका लेख इस प्रकार है : 'संवत् १४८३ वर्षे प्रथम वैशाख शुद १३ गुरौ श्रीअंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पट्टधरेण श्रीजयकीर्तिसूरीश्वर सुगुरूपदेशेन... श्रीजिराउला पार्श्वनाथस्य चैत्ये देहरि (३) कारापिता ।' प्रस्तुत दीपिका के प्रणेता आ. श्रीमाणिक्यशेखरसूरिजी भी अंचलगच्छीय आ.श्रीमेरुतुंगसूरिजी के शिष्य हैं । इसलिये जयकीर्तिसूरिजी और आ.श्रीमाणिक्यशेखरसूरिजी के गुरुभ्राता के जैसे मानने पर दीपिकाकार आ. श्रीमाणिक्यशेखरसूरिजी का समय विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी का साबित होगा । दूसरी बात यह भी है कि ग्रन्थ की वि.सं. १५५० से पहले लिखी हुई कोई प्रत नहीं है जिसके आधार पर उन्हें अधिक प्राचीन साबित कर सकें । हस्तप्रत ५. 9 दशाश्रुतस्कन्ध पर जो टीका साहित्य उपलब्ध है उसकी पाण्डुलिपियाँ कहाँ-कहाँ हैं इसकी सूची निम्नप्रकार है, यह सूची जिनरत्नकोश' से ली गयी है । १. दशाश्रुतस्कन्ध चूर्णिः ग्रं. २२२५ । १. २. ६. मुनिनिचयवाच्यमाना तमोहरा दीपिका पिण्डनिर्युक्तेः । ओघनिर्युक्तिदीपिका दशवैकालिकस्याप्युत्तराध्ययनदीपिके ॥३॥ ७. आचारदीपिकानवतत्त्वविचारणं तथास्य । एककर्तृतया ग्रन्था अमी अस्याः सहोदराः ॥४॥ श्री हंसविजयजी महाराज ग्रन्थालय, वडोदरा । नं. ५८१ । शान्तिनाथ मन्दिर, भण्डार, खम्भात । पोथी नं. ४९ (प्रत नं. २), पोथी नं. ५१ (प्रत नं. १) । ज्ञानविमलसूरि भण्डार, खम्भात । नं. ७१ । जेसलमेर का बडा भाण्डार । नं. १३६५ । सम्मतिरत्न सूरि भण्डार, खेडा । नं. ८८, ( वर्तमान में यह ज्ञानभण्डार आनन्दजी कल्याणजी पेढी, अहमदाबाद में है ।) भंठ की कुण्डी, भण्डार - जेसलमेर | नं. २९० । फोफलिया वाडा, वखतजी शेरी, भण्डार, पाटन । पोथी नं. ४५ (प्रत नं. २, ३) । १. सं. हरि दामोदर वेलणकर (एम.ए.) ।
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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