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________________ परिशिष्ट-१ अवहंत गोण मरूए चउण्ह वप्पाण उक्करो उवरिं । छोढुं मएसुंवट्ठाऽतिकोवे ण देमो पच्छित्तं ॥१०३॥ (देही) वणिधूयाऽच्चंकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गओ जाया । वरगपडिसेह सचिवे, अणुयत्तीहि पयाणं च ॥१०४॥ (धात्री) णिवचिंत विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा । खिसा णिसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ॥१०५॥ (चूर्णा) नेच्छड़ जलूगवेज्जगगहणं तम्मि य अणिच्छमाणम्मि । गाहावड़ जलुगा धण भाउग कहण मोयणया ॥१०६॥ (कान्ति) अवधीत् गां मरुत् चतुष्कवप्राणां उत्कर उपरि । क्षिप्त्वा मृते उपस्थितोऽतिकोपे न दद्मः प्रायश्चित्तम् ॥१०३॥ वणिग्दुहिताऽत्यहङ्कारिता भट्टा अष्टसुताग्रतः जाता । वरकप्रतिषेधः सचिवः अनुवृत्तिभिः प्रदानं च ॥१०४॥ नृपचिन्ता विकालप्रतीक्षणं च द्वारं न ददामि नृपकथनात् । खिसा (निन्दा) निशि निर्गमनं चौरा: सेनापतिः ग्रहणम् ॥१०५॥ नेच्छति जलौका वैद्यकग्रहणं तस्मिन् च अनीच्छन्ती तु । ग्राहयति जलौका धन( जन )भ्रातककथनमोचनके ॥१०६॥ मरुत् ने बैल का वध किया, चार खेतों की मिट्टी के ढेर से मारने पर वह मर गया, उसके मर जाने पर भी वह अत्यधिक क्रोध में स्थित रहा, (प्रायश्चित्त माँगने पर) प्रायश्चित्त नहीं देगें-(ऐसा कहा गया) ॥१०३॥ आठ पुत्रों के पश्चात् उत्पन्न हुई अत्यहङ्कारिणी वणिक्पुत्री भट्टा के वरों को (उद्दण्डता करने पर भी भर्त्सना न करने वाले को देने की इच्छा वाले पिता द्वारा) अस्वीकार कर दिया गया । अमात्य द्वारा (शर्त) स्वीकार करने पर भट्टा प्रदत्त, राज्यकार्य के कारण (अमात्य का) कुसमय घर लौटना, भट्टा द्वारा प्रतीक्षा, (भट्टा के द्वार खोलने से मना करने पर समय से आना), राजाज्ञा से अमात्य के लौटने में विलम्ब, (द्वार न खोलने पर सचिव द्वारा भर्त्सना), रुष्ट भट्टा का रात्रि में ही घर से निकल जाना, चोरों द्वारा चोर सेनापति (के पास ले जाना), सेनापति द्वारा पत्नी बनाने की इच्छा, भट्टा का न चाहना, सेनापति द्वारा जलूक वैद्य को विक्रय, उसको भी न चाहना, (जलूक वैद्य जलूकों को) पकड़वाता था । धन देकर भट्टा के भाई द्वारा उसे मुक्त किया गया । उसके घर में सैंकड़ों प्रकार के भैषज तेल थे, साधु द्वारा माँगे जाने पर (दासी को आदेश), दासी द्वारा तीन बार पात्र तोड़ देने
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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