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कातिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुर तें बरना।
गनफनिवन्द जजें तित बहविधि, मैं पूजौं भवहरना।। मोहि।। ऊँ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
गनधर, असनिधर, चक्रधर, हरधर गदाधर वरवदा।
अरु चापधर विद्यासुधर तिरसूलधर सेवहिं सदा।। दुख हरन आनन्द भरन तारन तरन चरन रसाल है। सुकुमाल गुनमनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है।। जय त्रिशला नन्दन, हरिकृत वन्दन, जगदानन्द, चन्दवरं। भव तापनिकन्दन तन कन मन्दन, रहितसपन्दन, नयनधरं।। जय केवल भानु कला सदन। भविकोक विकाशन कंजवनं। __जगजीत महारिपु मोहहरं। रजज्ञानदृगांबर चूरकरं।।। गर्वादिक मंगल मंडित हो। दुख दारिद्र को नित खन्डित हो। जगमांहि तुम्ही सत्पंडित हो। दुख दारिद्र को नित खंडित हो। हरिवंश सरोजन को रवि हो। बल्वन्त महंत तुम्हीं कवि हो।। लहि केवल धर्म प्रकाश कियो। अबलों सोई मारगराजतियो।
पुनि आपतने गुनमांहि सही। सुर मग्न रहै जितने सबहीं।। तिनकी बनिता गुणगावत हैं। लय माननि सों मन भवत हैं। पुनि नाचत रंग उमंग भरी। तुम भक्ति विषै पग एम धरी।।
झननं झननं झननं झननं। सुर लेत तहां तननं तननं।
घननं घननं घन घंट बजै। दृमदं दृमदं मिरदंग सजै। गगनांगनगर्भगता सुगता। ततता ततता अतता वितता।। धृगतां धृगतां गति बाजत है। सुरताल रसाल जु छाजत है।
सननं सननं सननं नभमें। इक रूप अनेक जुधारि भ्रमैं।। कै नारि सुबीन बजावति हैं। तुमरो जस उज्ज्वल गावति हैं। करताल विषै करताल धरै। सुरताल विशाल जुनाद करै।। इन आदि अनेक उछाह भरी। सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी। तुमही जगजीवन के पितु हो। तुमही बिन कारन के हितु हो। तुमही सब विघ्न विनाशन हो। तुमही निज आनन्द भासन हो। तुम ही चितचिंतितदायक हो। जगमांहि तुम्हीं सब लायक हो।। तुम्हरे पन मंगलमांहि सहि। जिय उत्तम पुन्य लियो सबही।।
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