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हमको तुमरी सरनागत है। तुमरे गुन में मन पागत है।। प्रभु मो हिय आप सदा बसिये। जबलों वसु कर्म नहीं नसिये।। तबलों तुम ध्यान हिये वरतो। तबलों श्रुतचिंतन चित्त रतो।। तबलों व्रत चारित चाहतु हों। तबलों शुभभाव सुगाहतु हों।। तबलोंसत संगति नित्य रहो। तबलों मम संजम चित्त गहों।। जबलों नहिं नाश करों अरिकों। शिवनारि वरों समताधरिको।। यह द्यो तबलों हम्को जिनजी। हम जाचतु हैं इतनी सुनजी।।
श्रीवीर जिनेशा नमित सुरेशा नागनरेशा भगति भरा।।
वृन्दावन ध्यावें विघ्न नशावै। वांछित पावे शर्मवरा।। ऊँ ह्रीं श्री वर्द्धमान जिनेन्द्राय महाग्रंम निर्वपामीति स्वाहा।
श्री सन्मते के जुगलपद, जो पूजै धरि प्रीत। वृन्दावन सो चतुर नर, लहै मुक्ति नवनीत।।
श्री सरस्वती पूजा
दोहा
जनम जरा मृतु क्षय करै, हरै कुनय जड रीति।
भवसागरसौं ले तिरे, पूजै जिंवच प्रीति।। ऊँ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भव सरस्वत्यै पुष्पांजलः।
छीरोदधिगंगा विमल तरंगा, सलिल अभंगा, सुखगंगा। भरि कंचन झारी, धार निकारी तृषा निवारी हित चंगा।। तीर्थंकर की ध्वनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमई।
सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन पूज्य भई।। ऊँ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भभवसरस्वतीदेव्यै जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर मंगाया चन्दन आया, केशर लाया रंग भरी। शारदपद वन्दों, मन अभिनन्दों,पाप निकन्दों दाह हरी।।तीर्थः ॐ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भभवसरस्वतीदेव्यै चन्दनम निर्वपामीति स्वाहा।
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