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रितुफल कल वर्जित लाय, कंचन थार भरों। शिवफलहित हे जिनराय, तुम ढिग भेंट धरों।। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय फलम निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल वसु सजि हिम थार, तनमन मोद धरों।
गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरों। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो।। ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अद्यम निर्वपामीति स्वाहा।
पंच कल्याणक
मोहि रखो हो सरना श्रीवर्द्धमान जिनराय जी मोहि रखो हो सरना। गरम साढ सित छट्ठ लिओ तिथि, त्रिशला उर अघहरना।
सुर सुरपति तित सेव करीनित, मैं पूजौं भव तरना।।
मोहि रखो हो सरना श्रीवर्द्धमान जिनराय जी मोहि राखो ऊँ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय आषाढ शुक्लषष्ठयां गर्म मन्गल मण्डिताय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
जनम चैतसित तेरस के दिन कुन्डलपुर कनवरना।
सुरगिर सुर गुरु पूज रचायो मैं पूजों भवहारना।। मोहि.।। ऊँ ह्रीं जैव शुक्ल त्रयोदश्यां जन्ममंगल प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
मगसिर असित मनोहर दश्मी, ता दिन तप आचरना।
नृप कुमार घर पारन कीनो, मैं पूजो तुम चरना।। मोहि.।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपो मंगल मंडिताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
शुक्ल दशै बैशाख दिवस अरि घाति चतुक छय करना।
केवल लहि भवि भवसरतारेम जजों चरन सुख भरना।। मोहि.॥ ऊँ ह्रीं बैसाख शुक्ल दश्म्याम ज्ञान कल्याण प्राप्ताय श्री महावीर जिनेन्द्राय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
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