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________________ लेकिन यह दर्शाने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं कि शकुन्तला के इस पुत्र के जन्म से पूर्व, इतना ही नहीं, बल्कि उसके वंश के जनक पुरु के भारत आगमन से भी पूर्व यह देश भारतवर्ष कहलाता था और इसके मूल निवासी भारत कहलाते थे। न केवल जैनपरम्परा बल्कि लगभग सम्पूर्ण ब्राह्मणिक पुराण इस तथ्य की घोषणा करते हैं कि वह नाभिपुत्र ऋषभ का पुत्र भरत ही था, जिसके नाम पर इस देश को भारत कहा जाता था। इस तथ्य के उल्लेख वेदों और वैदिक साहित्य की अन्य शाखाओं में भी उपलब्ध हैं। प्रो. जे. सी. विद्यालंकार कहते हैं, “हम यह सोचने के लिए मजबूर हैं कि हमारे देश का नाम भारतवर्ष इस भरत (शकुन्तला और दुष्यन्त का पुत्र) के कारण था, लेकिन इस नाम का श्रेय एक अन्य अधिक पूर्ववर्ती ऋषभपुत्र राजा भरत को जाता है, जो एक पौराणिक व्यक्ति अथवा कोई प्रागैतिहासिक पुरुष हैं।" किसी अन्य प्रकरण में वे कहते हैं, "उन जैन तीर्थङ्करों में प्रथम ऋषभदेव थे, जिनके पुत्र भरत के नाम पर यह देश भारतवर्ष नाम से जाना गया।" अतः यहाँ कोई भी कारण नहीं है कि इस परम्परा की सचाई और भगवान् ऋषभ के पुत्र भारतीय राजा सम्राट भरत की ऐतिहासिकता पर संदेह किया जा सके, जो विश्व का विजेता और संसार का शासक था, विशेषरूप से तब, जब विभिन्न परम्पराओं के द्वारा उसका अस्तित्व अच्छी प्रकार से पुष्ट है। तथ्य के रूप में भारत के हिन्दुओं का इतिहास साधारणरूप से आर्यों के इस देश में आगमन से प्रारम्भ किया जाता है, ठीक जैसे कि भारत के अंग्रेजों अथवा यूरोपियों का इतिहास एलेक्जेंडर के आक्रमण से प्रारम्भ किया जाता है। और इसलिए ही वैदिकधर्म और संस्कृति के घेरे से बाहर अथवा पूर्व की सभी घटनाओं और पुरुषों को अनैतिहासिक अथवा श्रेष्ठ होने पर प्रागैतिहासिक माना जाता है। वेदों में प्राचीनतम और प्रथम ऋग्वेद है और संसार के पुस्तकालय 39
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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