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________________ से सफलता पूर्वक सिद्ध करते हैं कि पृथ्वी पर धर्म के प्रथम प्रचारक ऋषभदेव थे। यहाँ तक कि ईसा से कई शताब्दी पूर्व के शिलालेखीय प्रमाण भी इस विचार का पर्याप्त रूप से समर्थन करते हैं। अब ये ऋषभदेव भारतीय क्षत्रियों का कुलीनतम और सर्वाधिक प्राचीन इक्ष्वाकुवंश के प्रारम्भकर्ता थे, जिसमें से बाद में सूर्य और चन्द्रवंश प्रस्फुटित हुए। ऋषभ स्वयं ही भारत के सर्वाधिक आदिकालीन और नैसर्गिक वंश मानव से सम्बन्धित हैं। उनके पिता और कई अन्य प्रसिद्ध पूर्वज, साथ ही वे स्वयं भी मनु कहलाते थे। अन्य जातियाँ जो भारत में उनके समय से लेकर प्रकट होना शुरू हुईं, वे रक्ष, यक्ष, नाग, फणी, गन्धर्व, किन्नर, वानर आदि विद्याधरों के साधारण नामों पर प्रचलित हुईं। विभिन्न प्रकार की कला, शिल्प, आभियान्त्रिकी और ऐसी ही अन्य वैज्ञानिक साहसिक कार्यों में अनिवार्य कुशलता प्राप्त थी। आधुनिक विद्वान् साधारणरूप से इन लोगों को जातिगत नाम द्रविड़ से पुकारना पसंद करते हैं। ऋषभ ने अपना धर्म समानरूप से मानव और विद्याधर दोनों को प्रदान किया। उनका पुत्र भरत भारत का प्रथम सम्राट् था और उसके नाम पर ही यह देश भारतवर्ष नाम से जाना गया और उसके वंशज भारत नाम से जाने गए। इससे पहले यह पृथ्वी अजनाभ अथवा हिमवर्ष नाम से जानी जाती थी। प्रथम भारतीय नगर अयोध्या ही ऋषभ का जन्मस्थल और भरत की सरकार का बैठक-स्थल था। गजपुर (बाद में हस्तिनागपुर नाम से विख्यात) और कुछ अन्य नगर और राज्य शीघ्र ही अस्तित्व में आए। ___यद्यपि कुछ विद्वान् अभी भी मानना पसंद करते हैं कि पुरुवंशी सर्वदमन अर्थात् हस्तिनागपुर का भरत, दुष्यन्त और शकुन्तला (कालिदास द्वारा प्रसिद्ध) का पुत्र ही देश के इस नाम के लिए जिम्मेदार है। 38
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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