SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी सर्वानुक्रमणिका में, सद्गुरु शिष्य अपनी वेदार्थदीपिका में, सायण अपने भाष्य में, (ये) सभी ऋषभ पद को व्यक्तिगत नाम के रूप में स्वीकार करते हैं, परन्तु वे नामित व्यक्ति का विशेष विवरण प्रस्तुत नहीं करते हैं। डा. सर राधाकृष्णन यद्यपि मानते हैं कि वैदिक उल्लेखों का स्पष्टरूप से आशय विशिष्ट जैन तीर्थङ्करों से है। जैसे-तैसे यह पूर्णतः स्पष्ट है कि मंत्रों में उल्लिखित नाम से तात्पर्य ऋषभ नाम के एक महान् पुरुष से है। और अभी तक समान नामवाले किसी अन्य महान् पुरुष का कोई भी संकेत उपलब्ध नहीं है, यह कैसे कहा जा सकता है कि उल्लिखित महापुरुष जैन तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभ नहीं हैं। अन्य विख्यात वैदिक विद्वान् स्वामी वी. पी. वादियार वेदरत्न भी स्पष्ट रूप से अपना मत प्रस्तुत करते हैं कि उल्लिखित पुरुष कोई अन्य नहीं है, बल्कि जैन तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव ही हैं। कई प्रामाणिक संस्कृत और हिन्दी के शब्दकोश भी शब्द ऋषभ का अर्थ प्रथम जैन तीर्थङ्कर का नाम ही करते हैं। यजुर्वेद, सामवेद और वैदिक साहित्य की अन्य शाखाएँ भी उनके नाम का उल्लेख करती हैं। इसके अलावा वेदों के टीकाकार स्वयं ही आग्रहपूर्वक कहते हैं कि पुराणों में वर्णित परम्पराओं की सहायता से वैदिक परम्पराओं का स्पष्टीकरण होना चाहिये और हम जानते हैं कि ऋषभदेव का वर्णन, जैसा कि आदिपुराण, हरिवंशपुराण आदि जैन पुराणों में दिया गया है, उपलब्ध अधिकाधिक ब्राह्मणिक पुराणों के वर्णन से पूर्णतः समान है। भागवत के टीकाकार पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र निश्चितरूप से जोर देकर कहते हैं कि “अवतार भगवान् ऋषभ नाभि और 36
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy