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________________ जोर देकर कहते हैं, "जैनधर्म और बौद्धधर्म निश्चितरूप से न हिन्दुधर्म और न ही वैदिक धर्म ही थे, तथापि वे भारत में जन्मे थे और भारतीय जीवन, संस्कृति एवं दार्शनिक विचार के अभिन्न अङ्ग । भारत का जैनधर्म अथवा बौद्धधर्म शत प्रतिशत भारतीय विचार एवं सभ्यता का परिणाम है, फिर भी इनमें से कोई भी हिन्दु नहीं है। अतः भारतीय संस्कृति को हिन्दु संस्कृति के नाम से पुकारना भ्रामक है ।" अतः यह बहुत आश्चर्यकारी प्रतीत होता है कि अभी भी कुछ लोग हैं और उनमें से कुछ प्रसिद्ध विद्वान् भी हैं, जो जैनधर्म की प्राचीनता और स्वतंत्र प्रकृति के बारे अभी भी में संदेह रखते हैं। जैसा कि प्रो. एस. श्रीकांत शास्त्री कहते हैं, “कुछ इतिहासविदों के कथनों को स्वीकारने का चलन हो गया है कि बौद्धधर्म की तरह जैनधर्म भी वैदिक आर्यों की बलिप्रथा की प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है और जैनधर्म के मामले में कई विद्वान् इस मत के इतिहास को पार्श्वनाथ से पूर्व लगभग 9वीं शती ई. पू. तक ले जाने के इच्छुक नहीं हैं । " लेकिन जैसा डॉ. जैकोबी ध्यान आकर्षित करते हैं, "पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे, इसमें कुछ भी सिद्ध करने योग्य नहीं है। जैनपरम्परा प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव को अपना संस्थापक बनाने के लिए एकमत है। यहाँ उन्हें प्रथम तीर्थङ्कर बनानेवाली परम्परा के विषय में मैं कुछ ऐतिहासिक हो सकता हूँ ।" डॉ. ए. एन. उपाध्ये (एम. ए., डी. लिट्.) कहते हैं, " व्यावहारिक दृष्टि को लेते हुए ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर इत्यादि जैन तीर्थङ्कर संसार के कुछ महानतम गूढ़वादी रहे हैं । यह उल्लेख करना रोचक होगा कि भागवत में वर्णित ऋषभदेव 34
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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