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________________ माना जाता है। उससे पहले के काल को इतिहास (लिखित) से पूर्व का कहते हैं, जिसके बारे में हमारा ज्ञान मुख्यतया धार्मिक परम्पराओं अर्थात् जैन और हिन्दू पुराणों पर आधारित है। मुख्यतया क्योंकि उस समय के इतिहास को अभी तक किसी ठोस आधार पर पुननिर्माण नहीं किया जा सका है। लेकिन राम का नाम अथवा रामायण की कथा भारत में प्रतिदिन उतनी ही घरेलु है, जितना कृष्ण का नाम अथवा महाभारत की कथा। यद्यपि बहुत से विद्वान् अभी भी रामकथा को काल्पनिक मानने का आग्रह करते हैं, फिर भी देश का साधारण जनसमूह और बुद्धिजीवी वर्ग के साथ विशेषतया भारतीय विद्वान् दृढ़ता से मानते हैं कि कथा से जुड़ी हुई अधिकतर घटनाएँ और पुरुष एकदम वास्तविक और ऐतिहासिक हैं, भले ही उनका समय अज्ञात हो और वे वैज्ञानिक इतिहास के घेरे के पर हों। यहाँ फिर से डॉ. एच. एस. भट्टाचार्य कहते हैं, "रामायण" की कथा जैसी जैन पुराणों में बताई है, वह मूलभूत रूप से वाल्मिकी के वृत्तांत के समान है। वह ब्राह्मणिक संस्करणों से भी काफी स्वतंत्र है।" उससे आगे कि “अतः यह महत्त्वपूर्ण तथ्य कि जैनों के पवित्र साहित्य में पूर्ण आदर से साकार हुई रामकथा इस बात का पूर्ण अकाट्य प्रमाण है कि यह प्रतीकात्मक पोशाक में दार्शनिक परिकल्पना मात्र नहीं है और इसका ऐतिहासिक आधार भी अवश्य है। इन परिस्थितियों में यह मानना अन्यायसंगत नहीं होगा कि रामकथा कम से कम ऐतिहासिक सच का महत्त्वपूर्ण अंश है।" वास्तव में इस कथा का प्राचीनतम उपलब्ध जैन संस्करण अर्थात् विमलसूरी का पउमचरिउ भी उस ही समय का है, जिस समय का प्राचीनतम ब्राह्मणिक संस्करण वाल्मिकी की रामायण है 23
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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