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________________ सहायक होगा, क्योंकि इस शिलालेख में नेमि का नाम मौजूद है।” यह महत्त्वपूर्ण दस्तावेज यद्यपि सिद्ध करता है कि पार्श्व और महावीर के उद्भव से भी पूर्व महाभारत के बाद के दिनों में 22वें जैन तीर्थङ्कर भगवान् नेमिनाथ की पूजा पहले से ही अच्छी तरह स्थापित हो चुकी थी । अतः अब भगवान् अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता और पार्श्वनाथ (ईसा पूर्व 9वीं शताब्दी) से बहुत पूर्व जैनधर्म के अस्तित्व के बारे में कोई संदेह शेष नहीं रहना चाहिये । अरिष्टनेमि भग. कृष्ण के चाचा और शौरीपुर (आगरा के पास) के राजा समुद्रविजय के पुत्र थे। लेकिन जब सभी यदुवंशी कृष्ण के नेतृत्व में पश्चिमी तट पर द्वारका में स्थानान्तरित हुए, तब नेमिनाथ भी उनके साथ आ गए। कृष्ण ने अपने चचेरे भाई का विवाह जूनागढ़ के राजा की पुत्री राजुलमती के साथ तय कर दिया। लेकिन विवाह के अवसर पर भोज के लिए जिनको मारा जाना था, उन जानवरों पर दया करते हुए नेमिनाथ ने विवाह के समारोह को तुरंत छोड़ दिया, संसार को त्याग दिया, रैवत पर्वत (गिरनार या ऊर्जयन्त) के शिखर पर आरूढ़ हो गये । वहाँ कठोर तप किया, केवलज्ञान प्राप्त कर पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों के अहिंसक मत का उपदेश विश्व को दिया और अन्ततः मोक्ष प्राप्त किया । अतः उनके वास्तविक ऐतिहासिक पुरुष होने में कोई प्रश्न नहीं है, लेकिन उनका समय निश्चित करने में कुछ कठिनाई है, क्योंकि महाभारत युद्ध के सही समय के विषय में मान्यताएँ अभी भी भिन्न हैं, जो कि ईसा पूर्व 900 से ईसा पूर्व 3000 तक विभिन्न विद्वानों के साथ बदलती हैं । लेकिन मान्यताओं की आधुनिक सामूहिक राय उसे ईसा पूर्व 15वीं शताब्दी के मध्य में स्थिर करती है और अब साधारणतया इसे भारत के सतत इतिहास का प्रारम्भिक बिन्दु 22
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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