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प्रस्तावना
परीक्षालेखोंकी विशेषतादिके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है उसमें के कुछ वाक्य इस प्रकार हैं :____“मैं नहीं जानता हूँ कि पिछले कई सौ वर्षों में किसी भी जैन विद्वानने कोई इस प्रकारका समालोचक ग्रन्थ इतने परिश्रमसे लिखा होगा और यह बात तो बिना किसी हिचकिचाहटके कही जा सकती है कि इस प्रकारके परीक्षा लेख जैन साहित्यमें सबसे पहले हैं और इस बानकी सूचना देते हैं कि जैन समाजमें तेरहपन्थ द्वारा स्थापित परीक्षा-प्रधानताके भाव नष्ट नहीं हो गये हैं। वे अब और भी तेजीके साथ बढ़ेंगे और उनके द्वारा मलिनीकृत जैनशासन फिर अपनी प्राचीन निर्मलताको प्राप्त करने में समर्थ होगा।"
x x x "ये परीक्षालख इतनी सावधानीसे और इतने अकाट्य प्रमाणोंके आधारपर लिखे गये हैं कि अभी तक उन लोगोंकी ओरसे जो कि त्रिवर्णाचारादि भट्टारकी साहित्यके परमपुरस्कर्त्ता और प्रचारक हैं, इनकी एक पंक्तिका भी खण्डन नहीं किया गया है और न अब इसकी आशा ही है । ग्रन्थपरीक्षाके पिछले दा भागोंका प्रकाशित हुए लगभग एक युग (१२ वपे) बीत गया। उस समय एक-दो पण्डितमन्योंने इधर उधर घोषणायें की थीं कि हम उनका खण्डन लिखेंगे, परन्तु वे अब तक लिख ही रहे हैं। यह तो असंभव है कि लेखोंका खण्डन लिखा जा सकता और फिर पण्डितोंका दलका दल चुपचाप बैठा रहता; परन्तु बात यह है कि इनपर कुछ लिखा ही नहीं जा सकता। थोड़ी बहुत पोल होती, तो वह ढंकी भी जा सकती; परन्तु जहाँ पोल ही पोल है, वहाँ क्या किया जाय ? गरज यह कि यह लेखमाला प्रतिवादियोंके लिये लोहेके चने हैं, यह सब नरहसे सप्रमाण और युक्तियुक्त लिखी गई है।"