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प्रकोणक-पुस्तकमाला जानेको तब बहुत ही आवश्यक महसूस किया; क्योंकि मगठी अनुवादात्मक संस्करणके बाद उस समय वह त्रिवर्णाचार हिन्दी अनुवादक साथ भी प्रकाशित हो गया था और उससे बड़ा अनर्थ हो रहा था। तदनुसार, यथेष्ट समय पासमें न होते हुए भी, मुझे दूमरे जरूरी कामोंको गौण करके इस त्रिवर्णाचारकी परीक्षामें प्रवृत्त होना पड़ा और उसने मेरा डेढ़ वर्षके करीबका समय ले लिया ! परीक्षा खूब विस्तार के साथ लगभग ३० फार्मकी अनेक लेखोंमें लिखी गई, और जन्मभूमि सरसावामें ज्येष्ठ कृष्ण १३ विक्रम संवत् १९८५ (ता. १७ मई सन १९२८) को लिग्वकर समाप्त हुई। ये परीक्षालेव* उस समय 'जैनजगन' पत्रमें मई मन् १९२७ से प्रकाशित होने प्रारंभ हुए थे। और इनके प्रकाशित हो चुकनेसे कोई तीन महीने बाद ही सिनम्बर मन् १६२८ में जैनग्रन्थरत्नाकर-कर्यालय बम्बईने इन्हें ग्रंथपरीक्षा-तृतीय मागके रूपमें अलग प्रकट किया था, और इनके साथमें उक्त 'धर्मपरीक्षा के परीक्षालेखको भी दे दिया था तथा अकलंक-प्रतिष्ठापाठकी जाँचो और पूज्यपाद-उपासकाचारकी जाँच नामक मर दो और लेखोंको भी शामिल कर दिया था। ग्रन्थपरीक्षाके इस तृतीय भागकी 'भूमिका' (भाद्र कृ० २, सं० १९८५)में पं० नाथूरामजी प्रेमीने जैनसाहित्यमें विकार,भट्टारकीययुगके कारनामों और दिगम्बर तेरहपन्थकी उत्पत्ति तथा उसके कार्य एवं प्रभावादिका कुछ दिग्दर्शन कराते हुए इन * इन लेखों की संख्याका स्मरण नहीं: और लेखोंकी मूल कापियाँ
अथवा जैनजगत्की फाइल मामने न होनेस उनकी अलग अलग तारीख आदि भी नहीं दी जा सकीं। । यह लेख २६ मार्च सन् १९१७ को देवबन्दमें लिखा गया । + यह लेख २५ नवम्बर सन् १९२१ को सरसावामें लिग्बा गया ।