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________________ प्रस्तावना दामोंमें चलाया करते हैं। इस भूलके कारण ही आज हमारे यहाँ भगवान् कुन्दकुन्द और सोमसन, समन्तभद्र और जिनसेन (भट्टारक ), तथा पूज्यपाद और श्रुतसागर एक ही आसन पर बिठाकर पूजे जाते हैं। लोगोंकी सदसद्विवेकबुद्धिका लोप यहाँ तक हो गया है कि वे संस्कृत या प्राकृतमें लिखे हुए चाहे जैसे वचनोंको प्राप्त भगवानके वचनोंसे जरा भी कम नहीं समझतं ! ग्रन्थपरीक्षाके लेखोंसे हमें आशा है कि भगवान महावीरके अनुयायी अपनी इस भूलको समझ जायेंगे और वे आप अपनेको और अपनी सन्तानको धूर्त ग्रन्थकारोंकी चुंगलमें न फंसने देंगे। जिस समय ये लेग्व निकले थे, हमारी इच्छा उसी समय हुई थी कि इन्हें स्वतंत्र पुस्तकाकार भी छपवा लिया जाय, जिससे इस विषयकी ओर लोगोंका ध्यान कुछ विशेषतासे आकर्षित हो; परंतु यह एक बिलकुल ही नये ढंगकी चर्चा थी, इसलिये हमने उचित समझा कि कुछ समय तक इस सम्बन्ध में विद्वानोंकी सम्मतिकी प्रतीक्षा की जाय । प्रतीक्षा की गई और खूब की गई। लेखमालाके प्रथम तीन लेखोंको प्रकाशित हुए तीन वर्षसे भी अधिक समय बीत गया; परंतु कहींसे कुछ भी प्राइट न सुन पड़ी; विद्वन्मण्डली की ओरसे अब तक इनके प्रतिवादमें कोई एक भी लेख नहीं निकला; बल्कि बहुतसे विद्वानोंने हमारे तथा लेखक महाशयके समक्ष इस बातको स्पष्ट शब्दोंमें स्वीकार किया कि आपकी समालोचनाये यथार्थ हैं।" इन लेखोंके बाद ता.८ अगस्त १९१७ को बम्बई में 'धर्मपरीक्षा' (श्वेताम्बरीय ) की परीक्षा लिखी गई, जो उसी समय जैनहितैषी भाग १३ अंक ७ में प्रकट हुई थी। फिर कुछ वर्षोंके बाद कई मित्रोंका यह तोत्र अनुरोध हुआ कि 'सोम-सेन-त्रिवर्णचार'को भी परीक्षा लिखी जाय उन्होंने इस त्रिवर्णचारकी परीक्षा के लिखे
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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