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________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला प्रेमीजीके इन सब अनुभवपूर्ण वाक्यों और हृदयोद्गारों से यद्यपि यह सहज ही समझा जा सकता है कि ये परीक्षालेख किस प्रकृति के हैं और इन्होंने जैन समाजको कितना प्रभावित एवं जागृत किया है, फिर भी मैं यहां इतना और बतला देना चाहता हूँ कि श्रीमान माननीय पं० गोगलदासजी वरैय्याने जिस 'जिनसे विचार' को खतौलीके दस्सा-बीसा केसमें अपनी गवाही के साथ बतौर प्रमाणके उपस्थित किया था उसकी परीक्षाके जब मेरे लेख निकल चुके और उनसे वह स्पष्ट जाली प्रन्थ प्रमाणित गया तब उन्होंने अपने मोरेना विद्यालयके पठनक्रमसे सभी विचारोंको निकाल दिया था और यह उनके हृदय परिवर्तन, गुण-प्रहण और भूल शंशोधनका एक ज्वलन्त उदाहरण था । दूसरे शब्दों में यह उस शब्दहीन हलचलका ही एक परिणाम था जो विद्वानोंके हृदयों में मेरी लेखमालाके निकलते ही पैदा हो गई थी और जिसके विषय में प्रेमीजीने यह भविष्यवाणीकी थी कि 'वह समय पर कोई अच्छा परिणाम लाये बिना नहीं रहेगी ।' प्रेमीजीकी यह भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य निकली और उस शब्दहीन हलचलका स्थूल परिणाम उस समय देखने को मिला जब कि सितम्बर सन् १९३८ में 'चर्चासागर' जैसा भ्रष्ट ग्रन्थ प्रकाशमें आया और बाबू रतनलालजी झांझरी कलकत्ताके द्वारा उसका कुछ प्राथमिक परिचय पाते ही सैकड़ों विद्वान तथा प्रतिष्ठित पुरुष 'चर्चासागर' को लेकर ऐसे दूषित ग्रन्थोंका विरोध करनेके लिये मैदान में आगये - उन्होंने विरोध में आवाज ही नहीं उठाई, पंचायतों द्वारा प्रस्ताव ही पास नहीं कराए बल्कि कितने ही विद्वानोंने जोरदार लेखनी भी उठाई है। कलकत्ताके सेठ गंभीरमलजी पांड्याने तो पश्चात्तापपूर्वक यह भी प्रकट किया है कि उन्होंने ८
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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