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________________ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला प्रकट नहीं किया। तत्त्वार्थसूत्रमें सकलव्रत अर्थात् महाव्रतके पाँच भेद वर्णन किये हैं । जैसा कि निम्नलिखित दो सूत्रोंसे प्रगट है : "हिंसानृतस्तेयब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥ ७-१ ॥ "देशसर्वतोऽणुमहती" ॥ ७ ॥ संभव है कि पंच समिति और तीन गुप्तिको शामिल करके तेरह प्रकाएका सकलव्रत ग्रन्थकर्ताके ध्यानमें रहा हो। परन्तु तत्त्वार्थसूत्रमें, जो भगवान् उमास्वामीका सर्वमान्य ग्रन्थ है, इन पंच समिति और तीन गुप्तियोको व्रतसंज्ञामें दाखिल नहीं किया है। विकलव्रतकी संख्या जो बारह लिखी है वह ठीक है और यही सर्वत्र प्रसिद्ध है। तत्त्वार्थसूत्रमं भी १२ व्रतोंका वर्णन है, जैसा कि उपर्युक्त दोनों सूत्राको निम्नलिखित सूत्रांके साथ पढ़नेसे ज्ञात होता है :-- "अणुव्रतोऽगारी" ।। ७-२०॥ "दिग्देशानथदण्डविरतिसामायिकप्रोपधोपवासोपभोगपरि भोगपरिमाणातिथिसंविभागवतसंपन्नश्च" ||७-२१ ॥ इस श्रावकाचारके श्लोक नं० ३२८* में भी इन गृहस्थोचित व्रतोंके पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षावन ऐसे बारह भेट वर्णन किये हैं। परन्तु इसी ग्रन्थके दूसरे पद्यमें ऐसा लिखा है कि "एवं व्रतं मया प्रोक्त त्रयोदशविधायुतम् ।। निरतिचारकं पाल्यं तेऽतीचारास्तु सप्ततिः ॥ ४६१ ।। अर्थात-मैंने यह तेरह प्रकारका व्रत वर्णन किया है, जिसको अतीचारोंसे रहित पालना चाहिए; और वे (व्रतोंकै) अतीचार संख्या में यहाँपर व्रतोंकी यह १३ संख्या ऊपर उल्लेख किये हुए श्लोक नंग २५६ और ३२८ से तथा तत्त्वार्थसूत्रके कथनसे विरुद्ध पड़ती है । तत्त्वा * "अणुव्रतानि पंच स्युस्त्रिप्रकारं गुणवतम् । शिक्षाव्रतानि चत्वारि सागाराणां जिनागमे" || ३२८ ।।
SR No.009242
Book TitleUmaswami Shravakachar Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1944
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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