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________________ स्व-पर-वैरी कौन ? स्व-पर-वैरी-अपना और दूसरोका शत्रु-कौन ? इस प्रश्नका उत्तर समारमं अनेक प्रकारसे दिया जाता है और दिया जा सकता है। उदाहरणक लिये १. स्वपरवरा वह है जा अपन बालकोका शिक्षा नहीं देता, जिसस उनका जीवन खराव हाता है, और उनके जीवनकी खराबीत उसका भी दुख-कष्ट उठाना पड़ता है, अपमानतिरस्कार भोगना पडता है और मत्संततिके लाभोसे भी वंचित रहना होता है। २. स्वपरचरी वह है जो अपने बच्चोकी छोटी उम्रमे शादी करता है, जिसमें उनकी शिक्षाम बाधा पड़ती है और वे मदा ही दुर्बल, रागी नथा पुरुषार्थहीन-उत्साहविहीन बने रहते है अथवा अकालम ही कालके गालमे चले जाते है । और उनकी इन अवस्थाओस उमको भी बराबर दख-कष्ट भोगना पड़ता है। ३. स्वपरवरी वह है जो धनका ठीक साधन पासमं न होने पर भी प्रमादादिक वशीभूत हुआ राजगार-धंधा छोड़ बैठता है--- कुटुम्बके प्रति अपनी जिम्मेदारीको भुलाकर आजीविकाके लिये कोई पुरुपार्थ नहीं करता, और इस तरह अपनेको चिन्ताओमे डालकर दुखित रखता है और अपने आश्रितजना-बालबच्चो आदिको भी, उनकी आवश्यकता पूरी न करके, सकट मे डालना तथा कष्ट पहुंचाता है। ४ स्वपरवैरी वह है जो हिंसा, भूठ, चोरी, कुशीलादि दुकम करता है, क्योंकि ऐसे आचरणोके द्वारा वह दूसरोंको ही कष्ट तथा हानि नहीं पहुँचाता बल्कि अपने आत्माको भी पतित करता है
SR No.009240
Book TitleSamantbhadra Vichar Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1954
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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