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समन्तभद्र-विचार-दीपिका श्रीवर्द्धमानमभिनम्य ममन्तभद्रं मद्वोध-चारुचरिता-ऽनघवाक्-स्वरूपम् । नच्छास्त्र-वाक्य-गत-भद्रविचार-मालां व्याख्यामि लोक-हित-शान्ति-विवेकवद्ध्यै ॥१॥
प्रास्ताविक
उक्त मगलपद्यक साथ जिस विचार-दीपिकाका प्रारम्भ किया जाता है वह उन म्वामी समन्तभद्रके विचारोकी-उन्हींके शास्त्रो परसे लिये गये उनके सिद्धान्तसूत्रो, सूक्तों अथवा अभिमतोकीव्याख्या होगी, जो मद्बोधकी मूर्ति थे-जिनके अन्तःकरणमे देदीप्यमान किरणोंके साथ निमल ज्ञान-सूर्य स्फुरायमान थासुन्दर सदाचार अथवा सञ्चारित्र ही जिनका एक भूषण था, और जिनका वचनकलाप सदा ही निष्पाप नथा वाधारहित था, और इसीलिये जो लोकम श्रीवर्द्धमान थे-वाह्याभ्यन्तर दानो प्रकारकी लक्ष्मीसे-शाभास वृद्धिको प्राप्त थे --और आज भी जिनके वचनो का सिक्का बड़े बड़े विद्वानोंके हृदयापर अकित है * । ___* स्वामी समन्तभद्रका विशेष परिचय पानेके लिये देखो, लेखकका लिग्वा हुया 'स्वामी समन्तभद्र' इतिहास तथा ‘मन्माव-म्मरमा-मगलपाठ' के अन्तर्गत 'स्वामि-समन्तभद्र-म्मरगा' ।
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