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________________ अनेकान्त-रस-लहरी रहने देते हैं-फिर किसी अवकाशके समय इसकी स्वतन्त्ररूपसे व्याख्या करेंगे और इस समय तुम्हारी समान मालियतके दान-द्रव्यकी बातको ही लेते हैं। एक दानी सेनाके लिये दो लाख रुपयेका मांस दान करता है, दूसरा आक्रमणके लिये उद्यत सेनाके वास्ते दो लाख रुपयेके नये हथियार दान करता है, तीसरा अपने ही आक्रमणमें घायल हुए सैनिकोंकी महमपट्टीके लिये दो लाख रुपयेकी दवा-दारूका सामान दान करता है और चौथा बंगालके अकालपीड़ितों एवं अन्नाभावके कारण भूखसे तड़प-तड़पकर मरनेवाले निरपराध प्राणियोंकी प्राणरक्षाके लिये दो लाख रुपयेका अन्न दान करता है । बतलाओ इन चारोंमें बड़ा दानी कौन है ? अथवा सबके दान-द्रन्यकी मालियत दो लाख रुपये समान होनेसे सब बराबरके दानी हैं-उनमें कोई विशेष नहीं, बड़े-छोटेका कोई भेद नहीं है ?' यह सुनकर विद्यार्थी कुछ भौंचकसा रह गया और उसे शीघ्र ही यह समझ नहीं पड़ा कि क्या उत्तर दूँ, और इस लिये वह उत्तरकी खोजमें मन-ही-मन कुछ सोचने लगा-दूसरे विद्यार्थी भी सहसा उसकी कोई मदद न कर सके कि इतने में अध्यापकजी बोल उठे 'तुम तो बड़ी सोचमें पड़ गये हो ! क्या तुम्हें दानका स्वरूप और जिन कारणोंसे दानमें विशेषता आती है-अधिकाधिक फलकी निष्पत्ति होती है उनका स्मरण नहीं है ? और क्या तुम नहीं समझते कि जिस दानका फल बड़ा होता है वह दान बड़ा है और जो बड़े दानका दावा है वह बड़ा दानी है ? तुमने तत्त्वार्थसूत्रके सातवें अध्याय और उसकी टीकामें पढ़ा हैस्व-परके अनग्रह-उपकारके लिये जो अपनी धनादिक किसी
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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