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छोटापन और बड़ापन छोटी है वही दूसरी अपेक्षासे बड़ी है और जो एक अपेक्षासे बड़ी है वही दूसरी अपेक्षासे छोटी है। इसी लिये कोई भी वस्त सवथा (विना अपेक्षाके) छोटी या बड़ी न तो होती है और न कही जा सकती है। किसीको सर्वथा छोटा या बड़ा कहना 'एकान्त' है। एक दृष्टिसे छोटा और दूसरी दृष्टिसे बड़ा कहना 'अनेकान्त' है। जो मनुष्य किसीको सर्वथा छोटा या बड़ा कहता है वह उसको सब ओरसे अवलोकन नहीं करता-उसके सब पहलुओं अथवा अंगोंपर दृष्टि नहीं डालता-न सब ओरसे उसकी तुलना ही करता है, सिक्केकी एक साइड (side) को देखनेकी तरह वह उसे एक ही ओरसे देखता है और इस लिये परा देख नहीं पाता । इसीसे उसकी दृष्टिको 'सम्यक् दृष्टि' नहीं कह सकते और न उसके कथनको 'सच्चा कथन' ही कहा जासकता है। जो मनुष्य वस्तुको सब ओरसे देखता है, उसके सब पहलुओं अथवा अगोंपर दृष्टि डालता है और सब श्रोरसे उसकी तुलना करता है वह 'अनेकान्तदृष्टि' है-'सम्यक् दृष्टि' है। ऐसा मनुष्य यदि किसी बस्तुको छोटी कहना चाहता है तो कहता है- 'एक प्रकारसे छोटी है, 'अमुककी अपेक्षा छोटो है', 'कथंचित छोटी है' अथवा 'स्यात छोटी' है। और यदि छोटो-बड़ी दोनों कहना चाहता है तो कहता है'छोटो भी है और बड़ी भी, एक प्रकारसे छोटी है-दूसरे प्रकार से बड़ी है, अमुककी अपेक्षा छोटी और अमुककी अपेक्षा बड़ी है अथवा काँचत् छोटी और बड़ी दोनों है। और उसका यह वचन-व्यवहार एकान्त-कदाग्रहकी ओर न जाकर वस्तुका ठीक प्रतिपादन करनेके कारण 'सञ्चा' कहा जाता है। मैं समझता हूँ अब तुम इस विषयको और अच्छी तरहसे समम गये होगे। विद्यार्थी-(पूर्ण सन्तोष व्यक्त करते हुए) हाँ, बहुत अच्छी