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________________ अनेकान्त-रस- लहरी तरहसे समझ गया हूँ। पहले समझनेमें जो कचाई रह गई थी वह भी अब आपकी इस व्याख्यासे दूर हो गई है। आपने मेरा बहुत कुछ अज्ञान दूर किया है, और इस लिये मैं आपके आगे नतमस्तक हूँ । अध्यापक वीरभद्रजी अभी इस विषयपर और भी कुछ प्रकाश डालना चाहते थे कि इतनेमें घंटा बज गया और उन्हें दूसरी कक्षा में जाना पड़ा । T [ २ ] बड़ेसे छोटा और छोटेसे बड़ा अध्यापक वीरभद्रने दूसरी कक्षा में पहुँच कर उस कक्षाके विद्यार्थियों को भी वही नया पाठ पढ़ाना चाहा जिसे वे अभी अभी इससे पूर्व की एक कक्षामें पढ़ाकर आये थे; परन्तु यहां उन्होंने पढ़ानेका कुछ दूसरा ही ढंग अख्तियार किया। वे बोर्डपर तीन इंच की लाइन खींच कर एक विद्यार्थीसे बोले - 'क्या तुम इस लाइनको छोटा कर सकते हो ?' विद्यार्थीने उत्तर दिया- 'हाँ, कर सकता हूँ' और वह उस लाइनको इधर-उधर से कुछ मिटानेकी चेष्टा करने लगा । यह देख कर अध्यापक महोदयने कहा - 'हमारा यह मतलब नहीं है कि तुम इस लाइन के सिरोंको इधरउधरसे मिटा कर अथवा इसमें से कोई टुकडा तोड़ कर इसे छोटी करो। हमारा आशय यह है कि यह लाइन अपने स्वरूपमें ज्योंकी त्यों स्थिर रहे, इसे तुम छ ओ भी नहीं और छोटी कर दो । a
SR No.009236
Book TitleAnekant Ras Lahari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1950
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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