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[प्रतिक्रमण-आवश्यक
'पाठ ८ मो श्रावक-कर्तव्य
षट् आवश्यक कर्म देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने ॥७॥
(पद्मनंदिपंचविंशतिका-उपासकसंस्कार) अर्थ :-जिनेन्द्रदेवनी पूजा, निग्रंथ गुरुओनी सेवा, स्वाध्याय, संयम, (योग्यतानुसार) तप अने दान—छ कर्म श्रावकोओ प्रतिदिन करवा योग्य छे.
__श्रावकना आठ मुळगुण ... मद्यमांसमधुत्यागी त्यक्तोदुम्बरपंचकः । नामतः श्रावकः ख्यातो नान्यथाऽपि तथा गृही ॥७२६ ।।
(पंचाध्यायी) अर्थ :-मद्य, मांस तथा मधनो त्याग करवावाको अने पांच *उदुम्बर फळोने छोडवावाळो गृहस्थ नामथी श्रावक कहेवाय छे पण मद्यादिकनुं सेवन करवावाळो गृहस्थ नामथी पण श्रावक कही शकातो नथी.
पाठ ६मो
मिच्छा मि दुक्कडं आ भव ने भवोभव महीं थयो वेरविरोध, अंध बनी अज्ञानथी, कर्यो अतिशय क्रोध;
ते सवि मिच्छा मि दुक्कडं. * जे वृक्षोने तोडवाथी दूध नीकळे छे ओवा वड, पीपर, उंबर, कंठुबर, पाकर
वृक्षोने क्षीरवृक्ष अथवा उदुम्बर कहे छे. तेमां सूक्ष्म तथा स्थूल त्रस जीवोनी घणी उत्पत्ति थाय छे. १, २ आलोचनादि--पदसंग्रह, पार्नु १०१, ५७.