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पश.
प्रतिक्रमण-आवश्यक]
जीव खमा छु सवि, क्षमा करजो सदाय, वेरविरोध टळी जजो, अक्षयपद-सुख सोय;
. . समभावी आतम थशे. भारे कर्मी जीवडा, पीले वेरनुं झेर, भवाटवीमां ते भमे, पामे नहि शिव लहेर;
धर्मनो मर्म विचारजो.
पाठ १० मो [परमपद प्राप्तिनी भावना कायोत्सर्गरूपे कहेवामां आवे छे]
(नमस्कार मंत्र बोलवो) अपूर्व अवसर अवो क्यारे आवशे? क्यारे थईशुं बाह्यांतर निग्रंथ जो? सर्व संबंधनुं बंधन तीक्ष्ण छेदीने, विचरशुं कव महत्पुरुषने पंथ जो? अपूर्व० १. सर्व भावथी औदासीन्यवृत्ति करी, मात्र देह ते संयमहेतु .. होय जो; अन्य कारणे अन्य कशुं कल्पे नहीं, देहे पण किंचित् मूर्छा नव जोय जो. अपूर्व० २. दर्शनमोह व्यतीत थई ऊपज्यो बोध जे, देह भिन्न केवल चैतन्यनुं ज्ञान जो तेथी प्रक्षीण चारित्रमोह विलोकिये, वर्ते अर्बु शुद्धस्वरूप, ध्यान जो. अपूर्व० ३.
आत्मस्थिरता त्रण संक्षिप्त योगनी, मुख्यपणे तो वर्ते देहपर्यंत जो; घोर परिषह के उपसर्गभये करी, आवी शके नहीं ते स्थिरतानो अंत जो. अपूर्व० ४.