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________________ ८४] [प्रतिक्रमण-आवश्यक पाठ ४ थो सर्वज्ञनुं स्वरूप त्रिकाळगोचर समस्त गुण–पर्यायो सहित संपूर्ण लोक अने अलोकने (छले द्रव्योने) जे प्रत्यक्ष जाणे छे ते सर्वज्ञदेव छे. ३०२. हे सर्वज्ञना अभाववादी! जो सर्वज्ञ न होय तो अतीन्द्रिय पदार्थोने (-इन्द्रियगोचर नथी अवा पदार्थोने) कोण जाणे? ___ इन्द्रियज्ञान तो स्थूल पदार्थो के जे इन्द्रियोना संबंधरूप वर्तमान होय तेने जाणे छे, अने तेमना पण समस्त पर्यायोने ते जाणतुं नथी. ३०३. (स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षामांथी) जे जाणतो अर्हतने गुण, द्रव्य ने पर्ययपणे, - ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे. ८०. जे अर्हतने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते (पोताना) आत्माने जाणे छे अने तेनो मोह अवश्य लय पामे (श्री प्रवचनसार) पाठ ५ मो समयसारजी-स्तुति . (हरिगीत) संसारी जीवनां भावमरणो टाळवा करुणा करी, सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर! तें संजीवनी; शोषाती देखी सरितने करुणाभीना हृदये करी, मुनिकुंद संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी. (अनुष्टुप) कुंदकुंद रच्यु शास्त्र, साथिया अमृते पूर्या, ग्रंथाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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