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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक [८५ (शिखरिणी) अहो! वाणी तारी प्रशमरस-भावे नीतरती, मुमुक्षुने पाती अमृतरस अंजली भरी भरी; अनादिनी मूर्छा विष तणी त्वराथी ऊतरती, विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोडे परिणति. (शार्दूलविक्रीडित) तुं छे निश्चयग्रंथ भंग सघळा व्यवहारना भेदवा, तुं प्रज्ञाछीणी ज्ञान ने उदयनी संधि सहु छेदवा; साथी साधकनो, तुं भानु जगनो, संदेश महावीरनो, विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तुं पंथ मुक्ति तणो. (वसंततिलका) सुण्ये तने रसनिबंध शिथिल थाय, जाण्ये तने हृदय ज्ञानी तणां जणाय; तुं रुचतां, जगतनी रुचि आळसे सौ, तुं रीझतां सकलज्ञायकदेव रीझे. (अनुष्टुप) बनावं पत्र कुंदननां, रत्नोना अक्षरो लखी; तथापि कुंदसूत्रोनां अंकाये मूल्य ना कदी. पाट ६ट्रो श्री आत्मसिद्धिशास्त्रनां केटलांक पदो जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत; समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत. वैराग्यादि सफळ तो, जो सह आतमज्ञान; तेम ज आतमज्ञाननी, प्राप्ति तणां निदान. १. ६.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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