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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
अर्थ :-१. द्रव्य--आहार, शरीर आदि, २. क्षेत्र--वसतिका, शयन, मार्गादि, ३. काल--पूर्वाण्ह (प्रातःकाल) मध्यान्ह (दोपहर) अपराण्ह (सांयकाल) दिवस, रात्रि, पक्ष (१५ दिन) मास (३० दिन) चातुर्मास (४ महिने) संवत्सर (१ वर्ष) अतीत (भूतकाल) अनागत (भविष्यत् आने वाला काल) वर्तमान (मौजूद रहने वाला) ४. भाव-संकल्प और विकल्प खोटे चित्त व्यापार से किये गये अपराधों की निन्दा, तथा गर्दा से युक्त होकर शुद्ध मन, वचन और काय से शोधन करना प्रतिक्रमण है ।।६।।
विशेष-निंदा और गर्हा--यद्यपि दोनों शब्द एकार्थ सरीखे दिखते है फिर भी इनमें निम्नलिखित अंतर है-- (क) जो अपने आत्मा की साक्षीपूर्वक किये हुए पापों को बुरा समझना उसे निंदा कहते है, किन्तु जो (ख) गुरू आदि की साक्षी पूर्वक किये हुए पापों की निंदा करना सो गर्दा कहलाती है।
गद्य-एइंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चतुरिदिया, पंचिंदिया, पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणप्फदिकाइया, तसकाइया, एदेसिं उद्दावणं, परिदावणं विराहणं, उवघादो कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।७।। ___अर्थ :-१. एकेन्द्रिय, २. द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, ४. चतुरिन्द्रिय, ५. पंचेन्द्रिय, ६. पृथ्वीकायिक, ७. अप्कायिक (जल कायिक) ८. तेजस्कायिक, (अग्निकायिक), ६. वायुकायिक, १०. वनस्पतिकायिक, और त्रसकायिक, इन सब इन्द्रिय और कायिक जीवों का १. उत्तापन, २. परितापन, ३. विराधन और ४. उपघात मैने स्वयं किया हो, औरों से कराया हो, और स्वयं करते हुए दूसरों की अनुमोदना की हो, वे सब पाप मेरे मिथ्या हों।