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________________ [प्रतिक्रमण-आवश्यक की इच्छा रखता हुआ आज मै आपके चरण कमलों में अपनी निन्दा पूर्वक त्याग करता हूं ।।२।। गाथा- खम्मामि सब्वजीवाणं; सब्बे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभूदेसु, वैरं मज्झ ण केणवि ।।३।। अर्थ :-मै सब जीवो से क्षमा याचना करता हूं, सब मुझे क्षमा प्रदान करें मेरा सब जीवों में मैत्रीभाव है, किसी के भी साथ मेरा बैर-भाव नहीं है।३।। गाथा- रागबंध पदोसंच, हरिसं दीणभावयं। उस्सुगत्तं भयं सोगं, रदिमरदि-च वोरस्सरे ।।४।। अर्थ :-१. राग, २. द्वेष, ३. हर्ष, ४. दीनभाव, ५. उत्सुकता, ६. भय, ७. शोक, ८. रति (प्रीति) और ६. अरति (अप्रीति) इन सब आकुलता को उत्पन्न करने वाले भावों का, मै परित्याग करता हूं ।।४।। गाथा— हा दुटु कयं, हा ! दुटु चिंतियं, भासियं च हा टुटुं । अंतो अंतो डज्झमि, पच्छुत्तावेणं वेदंतो।।५।। अर्थ :-हा ! १. यदि मैने कार्य से कोई दुष्ट कार्य किया हो। हा! २. यदि मन से कोई दुष्ट चिन्तन किया हो, और हा! ३. यदि मैने मुख से कोई दुष्ट वचन बोला हो, उसको मै बुरा समझता हुआ, पश्चात्ताप पूर्वक मन ही मन में जल रहा हूं अर्थात् उन दुर्भावनाओं का त्याग करता हूं।५।। गाथा- दुब्वे खेत्ते काले; भावे च कदावराह सोहणयं जिंदण, गरहण जुत्तो, मण, वच कायेण पडिक्कमणं ।।६।।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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