________________
[ प्रतिक्रमण-आवश्यक
विशेष :- यद्यपि ये चारों ही शब्द प्रायः एकार्थ वाचन है फिर भी इनका भेद समझने के लिए नीचे विशेषार्थ दिया है। १. पृथ्वीकायिकादि जीवों का उत्तापन अर्थात् प्राणों का वियोग रूप मारण । २. परितापन पृथ्वीकायिकादि जीवों को संताप पहुंचाना, ३. विराधन--पृथ्वीकायिकादि जीवों को• पीड़ा पहुंचाना और अनेक प्रकार से दुःखी करना, ४ उपघात --एक देश से अथवा संपूर्ण रूप से पृथ्वीकायिकादि जीवों को प्राणों से रहित करना ॥७॥
एक
आलोचना
FPT
परिविहाविदो,
गद्य - इच्छामि भंते ! चरित्तायारो तेरसविहो, पंचभहव्वदाणि, पंचसमिदीओ, तिगुत्तीओ चेदि । पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं, से पुढविकाड़या जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, आउकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, तेउकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा वाउकाइया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, वणप्फदिकाइया जीवा अणन्ताणंता हरिया, वीआ, अंकुरा। छिण्णा भिण्णां एदेसि उद्दावणं परिदावणं, विराहणं, उवघादो कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं || १ ||
अर्थ :- हे भगवन् ! पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्त इस प्रकार तेरह प्रकार का चारित्र है उसका मैंने प्रमाद वश परिहापन (खंडन) किया हो, उसकी आलोचना-विशुद्धि करना चाहता हूं। उस तेरह प्रकार के चारित्र मे पहला महाव्रत प्राणों के व्यतिपात से रहित है । उसमें मैने असंख्यातासंख्यात पृथ्वीकायिक जीव, असंख्यातासंख्यात अप्कायिक जीव, असंख्यातासंख्यात तेजस्कायिक जीव, असंख्यातासंख्यात वायुकायिक जीव, अनंतानंत वनस्पतिकायिक जीव तथा हरित ( सचित्त) बीज, अंकुर, छेदे भेदे, उनका उत्तापन,