SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [2 प्रतिक्रमण - आवश्यक ] परितापन विराधन और उपघात किया है, कराया है और करने वाले की अनुमोदना की है, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या होवे ||१|| गद्य -- बेइंदिया जीवा असंखेज्जासंखेज्जा, कुक्खि किमि संख खुल्लुय, वराऽय, अक्खरिट्ठय-गण्डवाल संबुक्क - सिप्पि, पुलविकाइया एदेसिं उद्दावणं, परिदावणं, विराहणं, उवघादो कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं || २ || अर्थ : – स्पर्शन और रसना ये जिनके दो इन्द्रियां होती है ऐसे दो इन्द्रिय जीव असंख्याता - संख्यात प्रमाण है उनमें से कुक्षि, कृमि (लट) घावों में पेदा होने वाले जीवों का भी ग्रहण किया गया है तथा शंख क्षुल्लक (बाला) वराटक ( कौड़ी) अक्ष, अरिष्टबाल (बाल जातिका ही जन्तु विशेष ) संबूक (लघुशंख) सीप, पुलवीक (पानी की जोंक) आदि अन्य भी दो इन्द्रिय जीव बहुत से है उनका उत्तापन, परितापन, विराधना और उपघात मैने किया हो, कराया हो और करने वाले की अनुमोदना की हो, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या होवे ॥२॥ गद्य -- तेइंदिया जीवा - असंखेज्जासंखेज्जा, कुन्थुदेहिय विच्छिय गोभिंदगोव- मक्कुण, पिपीलियाइया, एदेसिं उद्दावणं, परिदावणं, विराहणं उवघादो कदो वा कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं || ३ || अर्थ :- स्पर्शन, रसना, और प्राण ये जिनके तीन इंद्रियाँ होती है ऐसे तीन इंद्रिय जीव असंख्यातासंख्यात संख्या प्रमाण है उनमें से कुन्थु (सूक्ष्म जंतु) देहिक ( उद्देवल) गोभिंद, गोजों, मत्कुण (खटमल) पिपीलिका (कीड़ी) सावण की डोकरी आदि अन्य भी तीन इंद्रिय जीव बहुत से है उनका उत्तापन, परितापन, विराधना और उपघात मैने किया हो, कराया हो और करने वाले
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy