________________
८२]
[प्रतिक्रमण-आवश्यक आधाररूप छे, संसाररूप खाडामां पडता जीवोने टेकारूप छे, सर्व पदार्थोना स्वरूपने प्रकाशित करनारा श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन अर्थात् केवलज्ञान--केवलदर्शनने धारण करनारा छे, चार घाती कर्मरूप आवरणथी मुक्त छ, स्वयं राग-द्वेषने जीतनारा छे अने अन्योने पण राग-द्वेष जिताडनारा छे, स्वयं भवसमुद्रना पारने पहोंचेला छे अने अन्योने पण पार पहोंचाडनारा छे; स्वयं ज्ञान प्राप्त थयेल छे अने अन्योने पण ज्ञान प्राप्त करावनारा छे; स्वयं मुक्त छे अने अन्योने पण मुक्ति प्राप्त करावनारा छे; सर्वज्ञ छे, सर्वदर्शी छे, तेथी उपद्रवरहित, अचल, रोगरहित, अनंत, अक्षय, आकुळता-व्याकुळता रहित अने पुनरागमन रहित अवा मोक्षस्थानने पामेला छे. - सर्व प्रकारना भयोने जीतनारा जिनेश्वरोने नमस्कार हो.
इति प्रथम प्रतिक्रमण
- स्वाध्याय परम तप छे बारसविहम्मि य त्वे अब्भंत्रबाहिरे कु सलदिने । ण वि अस्थि ण वि य होहिदि सजझायसमं त्वो कम्मं ॥६॥
(भगवती आराधना-शिक्षाधिकार) अर्थ :-प्रवीण पुरुष जे श्री गणधरदेव तेमनाथी अवलोकन करवामां आवेलां जे बाह्य-अभ्यंतर बार प्रकारनां तप छे तेमां स्वाध्याय समान बीजुं तप कदी थयुं नथी, थशे नहि अने थतुं नथी.