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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[८१ पइवाणं, लोग-पज्जोअगराणं, अभय-दयाणं, चक्खु-दयाणं, मग्गदयाणं, सरण-दयाणं, जीव-दयाणं, बोहिदयाणं, धम्म-दयाणं, धम्म-देसियाणं, धम्म-नायगाणं, धम्म-सारहीणं, धम्म-वरचाउरंतचक्कवटीणं, दीवोताणं, सरणगईपइछा, अपडिहयवर-नाणदंसणधराणं, विअट्ट छउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं, राव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमलयमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगई नामधेयं, ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअभयाणं.
अर्थ :-अरिहंत भगवंतोने मारा नमस्कार हो, जे अरिहंत भगवान अर्थात् ज्ञानवान छे, द्वादशांगी धर्मनी आदि करनारा छे, तीर्थनी स्थापना करनारा छे, अन्यना उपदेश विना स्वयमेव बोधप्राप्त थयेला छे; सर्व पुरुषोमां उत्तम छे, पुरुषोमां सिंहसमान नीडर छ, पुरुषोमां पुंडरीक कमळ समान अलिप्त छे, पुरुषोमां प्रधान गंधहस्ति समान शक्तिशाळी छे. लोकमां उत्तम छे, लोकना नाथ छे, लोकना हितकारक छे, लोकमां दीवा समान प्रकाश करनारा छे, लोकमां अज्ञान अंधकारनो नाश करनारा छे; दुःखीओने अभयदान देनारा छे, अज्ञानथी अंध लोकोने ज्ञानरूप नेत्र देनारा छे, मार्गभ्रष्टने (मार्ग भूलेलाने) मार्ग देखाडनारा छे, शरणागतने शरण देनारा छे, संयमरूप जीवितना दाता छे, सम्यक्त्वनुं प्रदान करनारा छे, धर्महीनने धर्मदान करनारा छे, जिज्ञासुओने धर्मनो उपदेश करनारा छे, धर्मना नायक छे, धर्मना सारथि--संचालक छे, धर्ममां श्रेष्ठ छे तथा चक्रवर्ती समान चतुरन्त छे अर्थात् जेम चार दिशाओना विजय करवाना कारणे चक्रवर्ती चतुरन्त कहेवाय छे, तेम अरिहंत पण चार गतिओनो अंत करवाने कारणे चतुरन्त कहेवाय छे. भवसमुद्रमां डूबता जीवोने बेटसमान आधाररूप छे, कर्मशत्रुथी बचावनार छे, सन्मार्ग बतावनार होवाथी शरणरूप छे, दुःखी संसारी जीवोने आश्रयदाता होवाथी