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[प्रतिक्रमण-आवश्यक तमारां कहेलां दया, शांति, क्षमा अने पवित्रता में ओळख्यां नहीं. हे भगवन् ! हुं भूल्यो, आथड्यो, रझळ्यो अने अनंत संसारनी विटम्बनामां पड्यो छु हुं पापी छु. हुं बहु मदोन्मत्त अने कर्मरजथी करीने मलिन छु. हे परमात्मा! तमारां कहेला तत्त्व विना मारो मोक्ष नथी. हुं निरंतर प्रपंचमां पड्यो छु. अज्ञानथी अंध थयो छु, मारामां विवेकशक्ति नथी अने हुं मूढ छु, निराश्रित छु, अनाथ छु. निरागी परमात्मा ! हवे हुँ तमारु, तमारा धर्मर्नु अने तमारा मुनिनुं शरण ग्रहुं छु. मारा अपराध क्षय थई । हुं ते सर्व पापथी मुक्त थउं, ओ मारी अभिलाषा छे. आगळ करेलां पापोनो हुं हवे पश्चात्ताप करूं छु. जेम जेम हुं सूक्ष्म विचारथी ऊंडो ऊतरूं छु तेम तेम तमारा तत्त्वना चमत्कारो मारा स्वरूपनो प्रकाश करे छे. तमे निरागी, निर्विकारी, सच्चिदानंदस्वरूप, सहजानंदी, अनंतज्ञानी,