SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [७७ अनंतदर्शी अने त्रैलोक्यप्रकाशक छो. हुं मात्र मारा हितने अर्थे तमारी साक्षीले क्षमा चाहुं छु, ओक पळ पणं तमारां कहेलां तत्त्वनी शंका न थाय, तमारा कहेला रस्तामा अहोरात्र हुँ रहुँ, ओ ज मारी आकांक्षा अने वृत्ति थाओ! हे सर्वज्ञ भगवान! तमने हुं विशेष कहुं ? तमाराथी कंई अजाण्युं नथी. मात्र पश्चात्तापथी हुं कर्मजन्य पापनी क्षमा इच्छु छु. ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः . पाठ १४ मो सपा क्षमापना *चालु श्री सीमंधरस्वामी, श्री यूगमंधरस्वामी, श्री बाहस्वामी, श्री सुबाहस्वामी, श्री संजातकस्वामी, श्री स्वयंप्रभस्वामी, श्री वृषभाननस्वामी, श्री अनंतवीर्यस्वामी, श्री सूरप्रभस्वामी, श्री विशालकीर्तिस्वामी, श्री वज्रधरस्वामी, श्री चंद्राननस्वामी, श्री चंद्रबाहुस्वामी, श्री भुजंगमस्वामी, श्री इश्वरस्वामी, श्री नेमप्रभस्वामी, श्री वीरसेनस्वामी, श्री महाभद्रस्वामी, श्री देवयशस्वामी अने श्री अजितवीर्यस्वामी--अ नामना धारक, पांच मेरु संबंधी विदेहक्षेत्रमा वीस तीर्थंकर हाल बिराजमान छे तेमने मारा नमस्कार हो.. तेमना प्रत्ये तथा श्री अरिहंत, श्री सिद्धभगवान, श्री आचार्य महाराज, श्री उपाध्यायमहाराज तथा श्री निग्रंथ मुनिराज ने अर्जिका प्रत्ये तथा श्रावक-श्राविका प्रत्ये, कोई पण जातना अविनय, * श्री मोक्षमार्गप्रकाशक वगेरेना आधारे
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy