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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक [७५ पाट १२ मो चार मंगल चत्तारि मंगलं--अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं. चत्तारि लोगुत्तमा--अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो. चत्तारि सरणं पव्वज्जामि--अरिहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वजामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि. अर्थ :-मंगलभूत पदार्थो चार ज छे-अरिहंतो, सिद्ध भगवंतो, साधुओ अने केवलिकथित धर्म. लोकमां उत्तम पण चार ज छे--अरिहंत देवो, सिद्ध भगवानो, साधुओ अने केवलिप्ररूपित धर्म; तेथी ज हुं ओ. चार--अरिहंत प्रभुओ, सिद्ध परमात्माओ, साधुओ अने केवलिप्ररूपित धर्मनुं शरण अंगीकार करुं छु. पाठ १३ मो क्षमापना *(खामणा) हे भगवान! हुं बहु भूली गयो, में तमारां अमूल्य वचनने लक्षमां लीधां नहीं. तमारां कहेलां अनुपम तत्त्वनो में विचार को नहीं. तमारां प्रणीत करेला उत्तम शीलने सेव्यु नहीं. * श्रीमद् राजचंद्रकृत मोक्षमाळामांथी
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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