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________________ ७४] [प्रतिक्रमण-आवश्यक उत्तर :-मिथ्यात्वप्रकृतिना उदयमां जोडावाथी कुदेवमां देवबुद्धि, कुगुरुमां गुरुबुद्धि, कुशास्त्रमा शास्त्रबुद्धि, अतत्त्वमा तत्त्वबुद्धि, अधर्म (कुधर्म.)मां धर्मबुद्धि इत्यादि विपरीताभिनिवेश(-अभिप्राय)रूप जीवना परिणामने मिथ्यात्व कहे छे. मिथ्यात्वना पांच भेद छे--(१) अकांतिक मिथ्यात्व, (२) विपरीत मिथ्यात्व, (३) सांशयिक मिथ्यात्व, (४) अज्ञानिक मिथ्यात्व अने (५) वैनयिक मिथ्यात्व. से पांच भेदोनुं स्वरूप-- (१) पदार्थनुं स्वरूप अनेक धर्मोवाळु होवा छतां तेने सर्वथा ओक ज धर्मवाळो मानवो ते अकान्तिक मिथ्यात्व छे, जेम के-- आत्माने सर्वथा क्षणिक अथवा सर्वथा नित्य मानवो ते. ___ (२) द्रव्यनुं स्वरूप जे प्रकारे छे तेथी ऊंधी मान्यतारूप ऊंधी रुचिने विपरीत मिथ्यात्व कहे छे, जेम के--शरीरने आत्मा माने, सग्रंथने निग्रंथ माने, केवळीना स्वरूपने विपरीतपणे माने. (३) आत्मा पोताना कार्यनो कर्ता थतो हशे के परवस्तुना कार्यनो कर्ता थतो हशे ? ओ वगेरे प्रकारे संशय रहेवो तेने सांशयिक मिथ्यात्व कहे छे. (४) ज्यां हिताहित विवेकनो काई पण सद्भाव न होय तेने अज्ञानिक मिथ्यात्व कहे छे, जेम के--पशुवधने अथवा पापने धर्म समजवो. (५) समस्त देव अने समस्त मतोमा समदर्शीपणुं (सरखापणु) मानवू तेने वैनयिक मिथ्यात्व कहे छे. उपर प्रमाणे मिथ्यात्वनुं स्वरूप जाणीने सर्व जीवोओ मिथ्यात्व छोडवू जोई.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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