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[ प्रतिक्रमण - आवश्यक
अर्थ :- आ (पूर्वे कलां) तथा आवा बीजा पण अध्यवसान जेमने नथी, ते मुनिओ अशुभ के शुभ कर्मथी लेपाता नथी. एवं ववहारणओ पडिसिद्धो जाण णिच्छयणएण । णिच्छयणयासिदा पुण मुणिणो पावंति णिव्वाणं ॥ २७२॥ व्यवहारनय से रीत जाण निषिद्ध निश्चयनय थकी; निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी. २७२. अर्थ :- अ रीते (पूर्वोक्त रीते ) ( पराश्रित अवो) व्यवहारनय निश्चयनय वडे निषिद्ध जाण; निश्चयनयने आश्रित मुनिओ निर्वाणने
पामे छे.
वदसमिदीगुत्तीओ सीलतवं जिणवरेहि पण्णत्तं । कुव्वतो वि अभव्वो अण्णाणी मिच्छदिट्ठी दु ॥ २७३॥ जिनवरकहेलां व्रत, समिति, गुप्ति, वळी तप-शीलने करतां छतांय अभव्य जीव अज्ञानी मिथ्यादृष्टि छे. २७३. अर्थ :- जिनवरोओ कहेलां व्रत, समिति, गुप्ति, शील, तप करतां छतां पण अभव्य जीव अज्ञानी अने मिथ्यादृष्टि छे.
आदा खु मज्झणाणं आदा मे दंसणं चरितं च । आदा पच्चक्खाणं आदा मे संवरो जोगो ॥ २७७॥
मुज आत्म निश्चय ज्ञान छे, मुज आत्म दर्शन-चरित छे, मुज आत्म प्रत्याख्यान ने मुज आत्म संवर- योग छे. २७७.
अर्थ :- निश्चयथी मारो आत्मा ज ज्ञान छे, मारो आत्मा ज दर्शन अने चारित्र छे, मारो आत्मा ज प्रत्याख्यान छे, मारो आत्मा ज संवर अने योग (-समाधि, ध्यान) छे.