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________________ ६२] [प्रतिक्रमण-आवश्यक अने पर जीवो मने मारे छे', ते मूढ (-मोही) छे, अज्ञानी छे, अने आनाथी विपरीत (अर्थात् आईं नथी मानतो) ते ज्ञानी छे. जो ण मरदि ण य दुहिदो सो वि य कम्मोदएण चेव खलु । तम्हा ण मारिदो णो दुहाविदो चेदि ण दु मिच्छा ॥२५८॥ वळी नव मरे, नव दुखी बने, ते कर्मना उदये खरे, ‘में नव हण्यो, नव दुःखी कर्यो'-तुज मत शुं नहि मिथ्या खरे ? अर्थ :-वळी जे नथी मरतो अने नथी दुःखी थतो ते पण खरेखर कर्मना उदयथी ज थाय छे; तेथी ‘में न मार्यो, में न दुःखी कर्यो' ओवो तारो अभिप्राय | खरेखर मिथ्या नथी ? एसा दु जा मदी दे दुक्खिदसुहिदे करेमि सत्ते त्ति । एसा दे मूढमदी सुहासुहं बंधदे कम्मं ॥२५६॥ आ बुद्धि जे तुज-'दुःखित तेम सुखी करूं छु जीवने', ते मूढ मति तारी अरे! शुभ-अशुभ बांधे कर्मने. २५६. अर्थ :-तारी जे आ बुद्धि छे के हुं जीवोने दुःखी-सुखी करुं छु, ते आ तारी मूढ बुद्धि ज (मोहस्वरूप बुद्धि ज) शुभाशुभ कर्मने बांधे छे. अज्झवसिदेण बंधो सत्ते मारेउ मा व मारेउ । एसो बंधसमासो जीवाणं णिच्छयणयस्स ॥२६२॥ मारो-न मारो जीवने, छे बंध अध्यवसानथी, -आ जीव केरा बंधनो संक्षेप निश्चयनय थकी. २६२. अर्थ :-जीवोने मारो अथवा न मारो-- कर्मबंध अध्यवसानथी ज थाय छे. आ, निश्चयनये, जीवोना बंधनो संक्षेप छे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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