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________________ ६०] [प्रतिक्रमण-आवश्यक सौ कोई धर्म विषे जुगुप्साभाव जे नहि धारतो, चिन्मूर्ति निर्विचिकित्स समकितदृष्टि निश्चय जाणवो. २३१. अर्थ:-जे चेतयिता बधाय धर्मो (वस्तुना स्वभावो) प्रत्ये जुगुप्सा (ग्लानि) करतो नथी ते निश्चयथी निर्विचिकित्स (-विचिकित्सादोष रहित) सम्यग्दृष्टि जाणवो. जो हवदि असम्मूढो चेदा सद्दिट्ठि सबभावेसु । सो खलु अमूढदिट्ठी सम्मादिट्ठी मुणेदव्यो ॥२३२॥ संमूढ नहि जे सर्व भावे,-सत्यदृष्टि धारतो, ते मूढदृष्टिरहित समकितदृष्टि निश्चय जाणवो. २३२. अर्थ :-जे चेतयिता सर्व भावोमां अमूढ छे–यथार्थ दृष्टिवाळो छे, ते खरेखर अमूढदृष्टि सम्यग्दृष्टि जाणवो. जो सिद्धभत्तिजुत्तो उवगृहणगो दु सव्वधम्माणं । सो उवगृहणकारी सम्मादिट्ठी मुणेदब्बो ॥२३३॥ जे सिद्धभक्तिसहित छे, उपगृहक छे सौ धर्मनो, चिन्मूर्ति ते उपगूहनकर समकितदृष्टि जाणवो. २३३. अर्थ :-जे (चेतयिता) सिद्धनी (शुद्धात्मानी) भक्ति सहित छे अने पर वस्तुना सर्व धर्मोने गोपवनार छे (अर्थात् रागादि परभावोमां जोडातो नथी) ते उपगूहनकारी सम्यग्दृष्टि जाणवो. उम्मग्गं गच्छंतं सगं पि मग्गे ठवेदि जो चेदा । सो टिदिकरणाजुत्तो सम्मादिट्ठी मुणेदव्बो ॥२३४॥ उन्मार्गगमने स्वात्मने पण मार्गमां जे स्थापतो, चिन्मूर्ति ते स्थितिकरणयुत समकितदृष्टि जाणवो. २३४. अर्थ :-जे चेतयिता उन्मार्गे जता पोताना आत्माने पण मार्गमां स्थापे छे, ते स्थितिकरणयुक्त (स्थितिकरणगुण सहित) सम्यग्दृष्टि जाणवो.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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