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________________ ५८] - [प्रतिक्रमण-आवश्यक अर्थ:-जो परद्रव्य-परिग्रह मारो होय तो हुँ अजीवपणाने पामुं, कारण के हुं तो ज्ञाता ज छु तेथी (परद्रव्यरूप) परिग्रह मारो नथी. छिजदु वा भिजदु वा णिजदु वा अहव जादु विप्पलयं । जम्हा तम्हा गच्छदु तह वि हु ण परिग्गहो मज्झ ॥२०६॥ छेदाव, वा भेदाव, को लई जाव, नष्ट बनो भले, वा अन्य को रीत जाव, पण परिग्रह नथी मारो खरे. २०६." अर्थ :-छेदाई जाओ, अथवा भेदाई जाओ, अथवा कोई लई जाओ, अथवा नष्ट थई जाओ, अथवा तो गमे ते रीते जाओ, तोपण खरेखर परिग्रह मारो नथी. अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणी य णेच्छदे धम्मं । अपरिग्गहो दु धम्मस्स जाणगो तेण सो होदि ॥२१०॥ अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे पुण्यने, तेथी न परिग्रही पुण्यनो ते, पुण्यनो ज्ञायक रहे. २१०. अर्थ :-अनिच्छकने अपरिग्रही कह्यो छे अने ज्ञानी धर्मने (पुण्यने) इच्छतो नथी, तेथी ते धर्मनो परिग्रही नथी, (धर्मनो) ज्ञायक ज छे. अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदोणाणी यणेच्छदि अधम्मं । अपरिग्गहो अधम्मस्स जाणगो तेण सो होदि ॥२११॥ अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे पापने, तेथी न परिग्रही पापनो ते, पापनो ज्ञायक रहे. २११. अर्थ :-अनिच्छकने अपरिग्रही कह्यो छे अने ज्ञानी अधर्मने (पापने) इच्छतो नथी, तेथी ते अधर्मनो परिग्रही नथी, (अधर्मनो) ज्ञायक ज छे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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