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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [५३ मिथ्यात्व ने अविरत, कषायो, योग संज्ञ असंज्ञ छे, ओ विविध भेदे जीवमां, जीवना अनन्य परिणाम छे; १६४. वळी तेह ज्ञानावरणआदिक कर्मनां कारण बने, ने तेमनुं पण जीव बने जे रागद्वेषादिक करे. १६५. अर्थ :-मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय अने योग-ओ आस्रवो संज्ञ (अर्थात् चेतनना विकार) पण छे अने असंज्ञ (अर्थात् पुद्गलना विकार) पण छे. विविध भेदवाळा संज्ञ आस्रवो-के जेओ जीवमां उत्पन्न थाय छे तेओ-जीवना ज अनन्य परिणाम छे. वळी असंज्ञ आस्रवो ज्ञानावरण आदि कर्मनु कारण (निमित्त) थाय छे अने तेमने पण (अर्थात् असंज्ञ आस्रवोने पण कर्मबंधन निमित्त थवामां) रागद्वेषादि भाव करनारो जीव कारण (निमित्त) थाय छे. जाव ण वेदि विसेसंतरं तु आदासवाण दोण्हं पि। अण्णाणी ताव दु सो कोहादिसु वट्टदे जीवो ॥६६॥ कोहादिसु वटुंतस्स तस्स कम्मस्स संचओ होदि । जीवस्सेवं बंधो भणिदो खलु सबदरिसीहिं ॥७०॥ आत्मा अने आस्रव तणो ज्यां भेद जीव जाणे नहीं, क्रोधादिमां स्थिति त्यां लगी, अज्ञानी अवा जीवनी. ६६. जीव वर्ततां क्रोधादिमां संचय करमनो थाय छे, सहु सर्वदर्शी ओ रीते बंधन कहे छे जीवने. ७०. अर्थ :-जीव ज्यां सुधी आत्मा अने आस्रव–ओ बन्नेना तफावत अने भेदने जाणतो नथी त्यां सुधी ते अज्ञानी रह्यो थको क्रोधादिक आस्रवोमा प्रवर्ते छे; क्रोधादिकमां वर्तता तेने कर्मनो संचय थाय छे. खरेखर आ रीते जीवने कर्मोनो बंध सर्वज्ञदेवोओ कह्यो छे. जइया इमेण जीवेण अप्पणो आसवाण य तहेव । णादं होदि विसेसंतरं तु तइया ण बंधो से ॥७१॥
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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