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[प्रतिक्रमण-आवश्यक अविनाशी छे, केम के जेनी कोई संयोगथी उत्पत्ति न होय, तेनो कोईने विषे लय पण होय नहीं.
त्री पद :-'आत्मा कर्ता छे.' सर्व पदार्थ अर्थक्रियासंपन्न छे. कंई ने कंई परिणामक्रिया सहित ज सर्व पदार्थ जोवामां आवे छे.
आत्मा पण क्रियासंपन्न छे. क्रियासंपन्न छे, माटे कर्ता छे. ते कर्तापणुं त्रिविध श्री जिने विवेच्युं छे. परमार्थथी स्वभावपरिणतिओ निजस्वरूपनो कर्ता छे. अनुपचरित (अनुभवमां आववायोग्य विशेष संबंधसहित) व्यवहारथी ते आत्मा द्रव्यकर्मनो कर्ता छे. उपचारथी धर, नगर आदिनो कर्ता छे.
चोथु पद :-'आत्मा भोक्ता छे.' जे जे कंई क्रिया छे ते ते सर्व सफळ छे, निरर्थक नथी. जे कई पण करवामां आवे तेनुं फळ भोगववामां आवे ओवो प्रत्यक्ष अनुभव छे. विष खाधाथी विषयूँ फळ; साकर खावाथी साकरन फळ; अग्निस्पर्शथी ते अग्निस्पर्शन फळ; हिमने स्पर्श करवाथी हिमस्पर्शनं फळ जेम थया विना रहेतुं नथी, तेम कषायादि के अकषायादि जे कंई पण परिणामे आत्मा प्रवर्ते तेनुं फळ पण थवायोग्य ज छे, अने ते थाय छे. ते क्रियानो आत्मा कर्ता होवाथी भोक्ता छे.
पांचमुं पद :-'मोक्षपद छे.' जे अनुपचरित व्यवहारथी जीवने कर्मनुं कर्तापणुं निरूपण कर्यु, कापणुं होवाथी भोक्तापणुं निरूपण कर्यु, ते कर्मनुं टळवापणुं पण छे; केम के प्रत्यक्ष कषायादिनुं तीव्रपणुं होय पण तेना अनभ्यासथी, तेना अपरिचयथी, तेने उपशम करवाथी, तेनुं मंदपणुं देखाय छे, ते क्षीण थवायोग्य देखाय छे, क्षीण थई शके छे. ते ते बंधभाव क्षीण थई शकवायोग्य होवाथी तेथी रहित अवो जे शुद्ध आत्मस्वभाव ते रूप मोक्षपद छे.
- छटुं पद :-ते 'मोक्षनो उपाय छे.' जो कदी कर्मबंध मात्र थया करे ओम ज होय, तो तेनी निवृत्ति कोई काळे संभवे नहीं; पण