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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
जितमोह साधु तणो वळी क्षय मोह ज्यारे थाय छे, निश्चयविदो थकी तेहने क्षीणमोह नाम कथाय छे. ३३..
अर्थ :-जेणे मोहने जीत्यो छे ओवा साधुने ज्यारे मोह क्षीण थई सत्तामांथी नाश थाय त्यारे निश्चयना जाणनारा निश्चयथी ते साधुने 'क्षीणमोह' ओवा नागथी कहे छे.
*पाट ५ मो आत्मानुं स्वरूप जाणवा आत्माना छ पदनो पाठ कायोत्सर्ग (काउसग्ग) रूपे कहेवामां आवे छे :
(नमस्कार मंत्र बोलवो) अनन्य शरणना आपनार ओवा श्री सद्गुरुदेवने
अत्यंत भक्तिथी नमस्कार. शुद्ध आत्मस्वरूपने पाम्या छे ओवा ज्ञानीपुरुषोओ नीचे कयां छे ते छ पदने सम्यग्दर्शनना निवासनां सर्वोत्कृष्ट स्थानक कह्यां छे.
प्रथम पद :-'आत्मा छे.' जेम घट पट आदि पदार्थो छे तेम आत्मा पण छे. अमुक गुण होवाने लीधे जेम घट पट आदि होवार्नु प्रमाण छे, तेम स्वपरप्रकाशक ओवी चैतन्यसत्तानो प्रत्यक्ष गुण जेने विषे छे अवो आत्मा होवानुं प्रमाण छे.
बीजुं पद :-'आत्मा नित्य छे.' घट पट आदि पदार्थो अमुक काळवर्ती छे, आत्मा त्रिकाळवर्ती छे. घटपटादि संयोगे करी पदार्थ छे, आत्मा स्वभावे करीने पदार्थ छे; केम के तेनी उत्पत्ति माटे कोई पण संयोगो अनुभवयोग्य थता नथी. कोई पण संयोगी द्रव्यथी चेतनसत्ता प्रगट थवायोग्य नथी, माटे अनुत्पन्न छे. असंयोगी होवाथी ★ श्रीमद् राजचंद्रमांथी