________________
३६]. .
[प्रतिक्रमण-आवश्यक अर्थ :-जे सर्व त्रस अने स्थावर प्राणीओमां समताभाव राखे छे, तेने स्थायी (खरी) सामायिक होय छे ओम श्री केवळी भगवाने आगममां कयुं छे.
जस्स सण्णिहिदो अप्पा संजमे णियमे तवे । तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलिसासणे ॥१२७॥ संयम, नियम ने तप विषे आत्मा समीप छे जेहने, स्थायी समायिक तेहने भाख्यं श्री केवळीशासने. १२७.
अर्थ :-संयम पाळतां, नियम करतां तथा तप धरतां ओक आत्मा ज जेने समीप वर्ते छे, तेने स्थायी (खरी) सामायिक होय छे अम श्री केवळी भगवाने आगममां कयुं छे.
जस्स रागो दु दोसो दु विगडिं ण जणेति दु । तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ॥१२८॥ नहि राग अथवा द्वेषरूप विकार जन्मे जेहने, स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२८.
अर्थ :-जेने राग-द्वेष विकार पेदा थतो नथी, तेने स्थायी (खरी) सामायिक होय छे अम श्री केवळी भगवाने आगममा कयुं छे.
जो दु अट्टं च रुदं च झाणं वजेदि णिचसो । तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ॥१२६॥ जे नित्य वर्जे आर्त तेम ज रौद्र बने ध्यानने, स्थायी समायिक तेहने भाड्युं श्री केवळीशासने. १२६.
अर्थ :-जे नित्य आर्त अने रौद्र ध्यानोने टाळे छे, तेने स्थायी (खरी) सामायिक होय छे ओम श्री केवळी भगवाने आगममां कां छे.