SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३५ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] पाठ ३ जो आत्माना केवा भावने श्री भगवान सामायिक कहे छे ते हवे कहेवाय छे : जे समतामां लीन थई, करे अधिक अभ्यास; अखिल कर्म ते क्षय करी, पामे शिवपुर वास. ६२. सर्व जीव छे ज्ञानमय, जाणे समता धार; ते सामायिक जिन कहे, प्रगट करे भवपार. ६८. राग-द्वेष बे त्यागीने, धारे समता भाव; सामायिक चारित्र ते, कहे जिनवर मुनिराव. ६६. विरदो सम्बसावजे तिगुत्तो पिहिदिदिओ। तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलिसासणे ॥१२५॥ (हरिगीत) सावद्यविरत, त्रिगुप्त छे, इन्द्रियसमूह निरुद्ध छे, स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२५.' अर्थ :-जे सर्व सावधक्रियाथी विरक्त थई, त्रण गुप्तिओने धारीने पोतानी इन्द्रियोने गोपवे छे, तेने स्थायी (खरी) सामायिक होय छे ओम श्री केवळी भगवाने आगममा कयुं छे. जो समो सबभूदेसु थावरेसु तसेसु वा । तस्स सामाइगं ठाई इदि केवलिसासणे ॥१२६॥ स्थावर अने त्रस सर्व भूतसमूहमां समभाव छ, स्थायी समायिक तेहने भाख्यं श्री केवळीशासने. १२६. ★ योगीन्द्रदेवकृत योगसारमाथी. १. आ नं. १२५ थी १३३ सुधीनी गाथाओ श्री नियमसारनी छे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy