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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] (ईर्यापथ प्रतिक्रमण) पडिक्कामामि भंते ईरियावहियाये विराणाये अणुगुत्ते अइग्गमणे णिग्गणे ठाणेगमणे चक्कमणे पाणुगमणे बीजुगमणे हरिदुग्गमणे उच्चार पस्सबण खेल सिंधाणय वियडी पयिट्ठवणाये जे जीवा एइन्दिया वा बेइन्दिया वा तेइंदिया वा चउरिदिया वा पंचेंदिया वा णोल्लिदा वा पिल्लिदा वा संघादिदा वा ओदाविदा वा परिदाविदा वा किरिछिदा वा लोस्सिदा वा छिदिदा वा भिन्दिदा वा ठाणदो वा ठाणचक्कमणदो वा तस्स उत्तर गुणं तस्स पायछित्तिकरणं तस्स विसोही करणं जावरहंताण - भयताणं णमोकार करोमि। भावार्थ-हे भगवन् ! मेरे चलन में जीवों की हिंसा हुई हो तो उसके लिये मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। यथा मन-वच-काय को वश में न रखने, बहुत चलने, इधर उधर फिरने तथा द्विइंद्रियादि प्राणियों पर पैर रखकर चलने में मल, मूत्र, थूक, नाक--मल मिट्टी वगैरह डालने से एकेंद्रियादि पंचेन्द्रिय प्राणी अपने स्थान पर जाने से रोके गये हों, दूसरी जगह डाले गये हों, संघर्षित किये, कराये हों, दूसरे पर डाले गये हों, तपाये गये हों, काटे गये हों, मूर्छित किये गये हों, छेदे गये हों, और अपने स्थान से जाते हुये पृथक-पृथक किये गये हों, तो मैं उसका प्रायश्चित करता हूँ, दोषों की शुद्धि के लिये भगवान अरहंत को नमस्कार करता हूँ।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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