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[प्रतिक्रमण-आवश्यक तावकायं पावकम्म दुचरियं बोस्सरामि ।
कायोत्सर्ग करोम्यहं ।। - (नौ बार णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिये)
(ईर्यापथ आलोचना) इच्छामि भंते ईरिया वह मालोचेउ पुवुत्तर दक्षिण पच्छिम चउ दिसासु विदिसासु विहरमाणेण जुगुत्तर दिटिठणा दट्ठब्बा डव डव चरियाये पमाददोसेण पाणभूद जीव सत्ताणं एदेसिं उबघादो कदो वा कारिदो वा किरितो
वा समणुमणिदो वा तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।। भावार्थ-हे भगवन् ! मैं इर्यापथ की आलोचना करता हूँ। पूर्वोत्तर दक्षिण पश्चिम चारों दिशा और ईशानादि विदिशाओं में इधर उधर फिरने और ऊपर की ओर दृष्टि कर चलने में मैंने प्रमादवश द्विन्द्रियादिक प्राणियों का घात किया हो कराया हो वा अनुमति दी हो वे पाप मिथ्या होवें।
(दिग्वंदना) (तीन आवर्त व एकशिरोनति प्रति दिशा में करना चाहिये ।)
(पूर्व की ओर मुख करके पढ़े) प्राग्दिग्विंगन्तरतः केवलि जिन सिद्ध साधु
गणदेवाःये सर्वर्द्धिसमृद्धाःयोगीशास्तानहं वंदे । भावार्थ-पूर्व दिशा विदिशा में अरहंत, सिद्ध, साधु, केवलि,