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[प्रतिक्रमण-आवश्यक
'सामायिक' पाठ प्रारंभ
णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, _ णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं । चत्तारि मंगलं, अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं,
साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहूं.सरणं पव्वज्जामि,
केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि ।
ॐ ही सर्व शान्ति कुरू कुरू स्वाहा ।। भावार्थ-अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुओं को नमस्कार हो। संसार में अरहंत, सिद्ध साधु, केवलिप्रणीत, धर्म ये ही चार मंगल रूप हैं। ये ही चार उत्तम हैं, ये ही चार परम शरण हैं। ये सर्व प्रकार शांति करें।
(ईर्यापथ शुद्धि पाठ) श्लोक - इर्या पथे प्रचलिताद्य मया प्रमादा,
देकेन्द्रिय प्रमुख जीवनिकाय बाधा । निवर्तिता यदि भवेद युगान्तरेवा,
मिथ्यातदस्तु दुरितं गुरु भक्ति तो मे ।। भावार्थ-हे भगवन् ! मार्ग में चलते हुए मुझसे प्रमाद वश बिना देखे एकेंद्रियादिक जीव की हिंसा हुई हो तो, वह आपकी भक्ति से मिथ्या होवे। .
मिथ्यात