________________
प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[१७ देह पर रहे हुए परिग्रह एवं शरीर के प्रति ममता का त्याग करने के अभ्यास पूर्वक नौ बार ‘णमोकार मन्त्र' का जाप्य मन में बोलकर, ३ आवर्त ए एक शिरोनति करनी चाहिये। इसी प्रकार चारों दिशाओं में से प्रत्येक में नौ बार णमोकार मंत्र का जाप्य, ३ आवर्त व एक शिरोनति करनी चाहिये। (दोनों हाथ जोड़कर बाई ओर से दाहिनी ओर ले जाते हुए घुमाना आवर्त्त है और मस्तक झुकाना शिरोनति है) प्रत्येक दिशा में पंच परमेष्ठी हैं, उस दिशा में विद्यमान तीन लोक के कृत्रिम-अकृत्रिम जिन चैत्यालयों को नमस्कार करें। बाद में जिस दिशा से आज्ञा ली है, उस दिशा में अष्टांग नमस्कार करके तीन बार नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, बोलकर आसन लगाना चाहिए और फिर सामायिक पूर्ण होने तक उस आसन को नही बदलना चाहिए। किसी प्रकार की विघ्न-बाधा आने पर भी अपने आसन को नहीं छोड़ना चाहिए। आसन लगाने की विधि :(१) खड़गासन-अपने दोनों पैरों को चार अंगुल के फासले से
रखकर दोनों हाथ को सीधा लटका कर सीधा खड़ा होने को
"खड़गासन" कहते हैं। (२) पद्मासन-दाहिनी जांघ पर बांये पैर, बाँई जांघ पर दाहिने पैर
को रखकर गोद में बायें हाथ की हथेली को नीचे रखकर दाहिने हाथ की हथेली को ऊपर रख कर सीधा बैठने को
“पद्मासन'' कहते हैं। (३) अर्द्धपद्मासन-बायें पैर की जांघ के ऊपर दाहिना पैर रखकर
पद्मासन की भाँति हाथों की हथेलियों को रखकर सीधा बैठने को “अर्द्धपद्मासन" कहते हैं। “सामायिक" करते समय पूर्व दिशा में इन आसनों में से कोई