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________________ १६] [ प्रतिक्रमण - आवश्यक हो, गृह हो, चैत्यालय हो या धर्मात्मा पुरुषों का प्रोद्योपवास करने का स्थान हो, ऐसे एकान्त विक्षेप रहित स्थान में प्रसन्नचित होकर, समस्त मन के विकल्पों को छोड़कर 'सामायिक' करनी चाहिये । ( रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ११ के आधार से ) 'सामायिक' प्रारम्भ करने की विधि : " सामायिक" प्रारम्भ करने से पहिले अपनी इन्द्रियों के विषय - व्यापार से विरक्त होकर अपने केश - वस्त्रादि को यथाविधि बाँध लेना चाहिए, जिससे के सामायिक करते समय क्षोभ न हो । सामायिक के काल में खान, पान, व्यापार, रोजगार, लेन-देन विकथा, आरम्भ, समारंभ विसंवादादि समस्त पाप क्रियाओं को मन-वचन-काय-कृत-कारित अनुमोदना से त्याग कर एवं मर्यादा के बाहर क्षेत्र में नियत समय तक हिंसादि पांच पापों को सर्वथा त्याग कर राग-द्वेष रहित सकल जीवों पर समता भाव धारण कर; आर्त्त, रौद्र ध्यान छोड़कर एक चिदानन्द स्वरूप शुद्धात्मा का ध्यान करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। "अहं समस्त सावद्ययोगाद्विरतोस्मि" "मैं समस्त सावद्ययोग का त्याग करता हूँ ।" ऐसे कहकर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके दोनों हाथों को सीधा लटका कर दोनों पावों के बीच में चार अंगुल की जगह रखकर नासादृष्टि लगाकर कायोत्सर्ग पूर्वक आसन पर खड़ा होकर अरहन्त सिद्ध भगवान की साक्षी से दो घड़ी ४८ मिनिट तक “सामायिक" करने की आज्ञा लेकर प्रतिज्ञा करनी चाहिये । मेरी सामायिक काल की मर्यादा पूर्ण न हो जाय, तब तक मैं दूसरे स्थान का एवं परिग्रह का त्याग करता हूँ, पुनश्च अपनी
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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